अपने प्रेमी के लिए तैयार हो गयी थी प्रह्लाद को जलाने के लिए होलिका, वरना वो भी नहीं चाहती थी कि…

डेस्क। होली का त्योहार वातावरण को रंग और उमंग से भर देने और खुशियां मनाने का त्योहार है। इसका पौराणिक महत्व है। होली का संबंध होलिका-प्रह्लाद से माना जाता है लेकिन इस कहानी में एक किरदार ऐसा भी है जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं।
ये तो सभी जानते हैं कि होलिका दहन के दूसरे दिन रंग पर्व मनाया जाता है। होलिका का दहन बुराई के प्रतीक के तौर पर किया जाता है लेकिन दहन से पहले होलिका की पूजा भी की जाती है। होलिका अगर वास्तव में बुराई की प्रतीक होती तो उसकी पूजा नहीं की जाती। लेकिन क्या आपके मन में ये सवाल आया है कि फिर उसकी पूजा क्यों की जाती है?
दरअसल जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने वाली थी, उस दिन नगर के सभी लोगों ने घर-घर में अग्नि जलाकर प्रहलाद की रक्षा करने के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की थी। अग्निदेव ने लोगों की इस प्रार्थना को स्वीकार किया और लोगों की इच्छा के अनुसार होलिका नष्ट हो गई और प्रह्लाद आग से सकुशल बच गया। इसीलिए प्रह्लाद को बचाने के लिए मान्यतानुसार होलिका दहन से पहले होलिका की पूजा की जाती है। वैसे तो होलिका को लोग खलनायिका के रूप में जानते हैं लेकिन हिमांचल प्रदेश में लोग होलिका को एक बेबस प्रेमिका के रूप में देखते हैं, जिसने अपने प्रिय से मिलन की खातिर मौत को गले लगा लिया।

होलिका और पडोसी राज्य के राजकुमार इलोजी एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों का विवाह होना भी तय हो चुका था। विवाह की तिथि पूर्णिमा निकली। इधर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भक्ति से परेशान था। बहन होलिका के सामने जब उसने प्रह्लाद को अग्नि में भस्म कर देने का प्रस्ताव रखा तो होलिका ने इंकार कर दिया। फिर हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में व्यवधान डालने की धमकी दी। होलिका को डर था कि कहीं हिरण्यकश्यप इलोजी को कोई नुकसान ना पहुंचा दे। बेबस होकर होलिका ने भाई की बात मान ली और प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने की बात स्वीकार कर ली। वह अग्नि की उपासक थी और अग्नि का उसे भय नहीं था। सबसे ख़ास बात ये है कि उसी दिन होलिका के विवाह की तिथि भी थी।

उधर दूसरी तरफ इन सब बातों से बेखबर इलोजी बारात लेकर आ रहे थे और होलिका प्रहलाद को जलाने की कोशिश में स्वयं जलकर भस्म हो गई। जब इलोजी बारात लेकर पहुँचे तब तक होलिका की देह जलकर राख हो चुकी थी। इलोजी यह सब सहन नहीं कर पाए और वो भी हवन में कूद गए लेकिन तब तक आग बुझ चुकी थी। अपना संतुलन खोकर वे राख और लकड़ियाँ लोगों पर फेंकने लगे। जिसके बाद वो मानसिक संतुलन खो बैठे और उसी हालत में उन्होंने जीवन काटा। होलिका-इलोजी की प्रेम कहानी आज भी हिमाचल प्रदेश के लोग याद करते है। हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में इलोजी को अजर-अमर माना जाता है। मारवाड़ के कई गांवों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित हैं और लोग उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
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