नई दिल्ली। कनाडा (Canada) के नए प्रधानमंत्री मार्क जे. काॅर्नी के आमंत्रण पर PM नरेंद्र मोदी G-7 शिखर सम्मेलन (summit) के लिए वहां पहुंच चुके हैं। इस समिट में 7 देशों अमेरिका, फ्रांस, जापान, इटली, ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा की भागीदारी है। भारत (India) जी-7 का हिस्सा नहीं है लेकिन वो इस समिट का हिस्सा बना है। ऐसा इसलिए क्योंकि आमतौर पर G7 की मेजबानी करने वाला देश ही किसी अन्य देश को न्योता दे सकता है जो जी-7 का हिस्सा नहीं हैं।
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दुनिया में सबसे बड़ी आबादी और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भारत (India) औपचारिक सदस्य न होने के बावजूद आउटरीच पार्टनर के रूप में जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग ले चुका है। G7 की शुरुआत 1975 में हुई थी। इसका मकसद तेल उत्पादक देशों की तरफ से तेल के एक्सपोर्ट पर लगाई गई पाबंदियों के कारण होने वाली आर्थिक चुनौतियों से निपटना था। इस तरह उस साल 6 देश अमेरिका, फ़्रांस, इटली, जापान, ब्रिटेन और वेस्ट जर्मनी ने मिलकर एक ग्रुप बनाया। इसके ठीक एक साल बाद इसमें कनाडा भी जुड़ा।

अब सवाल उठता है कि भारत (India) और चीन दुनिया की टॉप 4 अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं, फिर ये जी7 का हिस्सा क्यों नहीं हैं। चीन (China) की महत्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक उपस्थिति के बावजूद इसे G7 में शामिल नहीं किया गया है। दरअसल दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में चीन में प्रति व्यक्ति धन का स्तर अपेक्षाकृत कम है, इसलिए यह जी7 का हिस्सा नहीं है।
चीन की तरह भारत (India) में भी प्रति व्यक्ति आय इन सात देशों की तुलना में बहुत कम है। जब जी7 बना था तब भारत एक विकासशील देश था और गरीबी से जूझ रहा था। जी7 का गठन विकसित देशों के लिए किया गया था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक रूप से मजबूत थीं। भारत उस दौर में इस मानदंड पर खरा नहीं उतर रहा था। जी7 अब अपने समूह का विस्तार नहीं करता। नए सदस्यों को नहीं जोड़ता है। यही वजह है कि भारत और चीन इस समूह का हिस्सा नहीं है।
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