नई दिल्ली। भारत (India) के लगभग हर शहर में सिविल लाइंस (Civil Lines) इलाका होता है। ये इलाका क्यों इतना खास है कि कई शहरों (Why Cities Have Civil Lines) में मौजूद है। अगर आपसे यह पूछा जाए कि क्या आपको सिविल लाइंस के पीछे का कारण पता है कि यह इलाका हर सिटी (city) में क्यों है, तो शायद ही इसका सही जवाब पता होगा।
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सिविल लाइंस (Civil Lines) नाम आजादी से पहले के भारत से ब्रिटिश (British) राज के दौर से जुड़ा हुआ है। ‘सिविल लाइंस’ शब्द अपने आप में ही उस दौर की प्रशासनिक और समाजिक व्यवस्था को बयां करता है। जहां ‘सिविल’ का अर्थ नागरिक यानी सेना से इतर, ब्रिटिश प्रशासन के वे अधिकारी जैसे कलेक्टर, मजिस्ट्रेट, पुलिस प्रमुख और अन्य उच्च अधिकारी जो देश चलाने का काम करते थे। वहीं लाइंस का मतलब आवासीय कतारें उन अधिकारियों के लिए विशेष रूप से बनाए गए बड़े बंगलों की कतारें हुआ करती थी।

सिविल लाइंस (Civil Lines) ब्रिटिश शासन की शक्ति, श्रेष्ठता और अलगाव का प्रतीक भी थे। यहां रहने वाले अंग्रेज अधिकारी खुद को स्थानीय आबादी से अलग रखते थे, जो उनके सामाजिक दर्जे को दर्शाता था। आजादी के इतने दशकों बाद भी, ये सिविल लाइंस अपनी मूल पहचान को बरकरार रखे हुए हैं। हालांकि बदलते दौरा के साथ भले ही अब यहां भारतीय अधिकारी या लोग रहते हों। लेकिन आज भी इन इलाकों में एक विशिष्ट कॉनिकल आभा महसूस की जा सकती है, जो हमें उस दौर की याद दिलाती है जब भारत एक बिल्कुल अलग देश था।
सिविल लाइंस नाम के इलाके में आपको शहर के मुख्य बाजार, भीड़भाड़ वाले भारतीय मोहल्लों और औद्योगिक क्षेत्रों से दूर, स्ट्रैटजी रूप से विकसित किया जाता था। ब्रिटिश अधिकारी अपने यूरोपीय जीवनशैली को बनाए रखने के लिए एक शांत, स्वच्छ और नियंत्रित वातावरण चाहते थे। इन सिविल लाइंस में सिर्फ बंगले ही नहीं होते थे, बल्कि चौड़ी सड़कें, हरे-भरे लॉन, क्लब, चर्च और टेनिस कोर्ट जैसी सुविधाएं भी होती थीं, जो ब्रिटिश समुदाय के मनोरंजन और सामाजिक मेलजोल का केंद्र थीं। सिविल लाइंस एक प्रकार का ब्रिटिश राज के समय में ‘मिनी-इंग्लैंड’ था, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित किया गया था।
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