डेस्क। आज भारत में बकरीद (Bakrid) मनाई जा रही है। बकरीद का अगर असली या वास्तविक नाम जानना चाहते हैं तो इसे इस्लाम (Islam) धर्म के मुताबिक, ईद-उज़-ज़ोहा या ईद-उल-अज़हा (Eid-ul-Adha) कहा जाता है। बक़रईद, ईदुज़्ज़ुहा, क़ुरबानी की ईद, इदे-क़ुरबां आदि नाम भी हैं। बकरा ईद (Bakrid) को बलिदान का प्रतीक माना जाता है। ये परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।
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इस्लाम के प्रमुख पैगंबरों में से हजरत इब्राहिम की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। माना जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम के ख्वाब में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा। इब्राहिम को अपनी इकलौती औलाद उनका बेटा इस्माइल सबसे अजीज था। हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे लेकिन अल्लाह के हुक्म के आगे वह बेटे को कुर्बान करने को तैयार हो गए। उन्होंने अपनी आंख पर पट्टी बांधकर जैसे ही बेटे की गर्दन पर छुरा रखा, तभी उसकी जगह दुंबा आ गया। तभी से बकरा ईद का त्योहार मनाया जा रहा है।
यह तो सब जानते हैं कि बकरा ईद (Bakrid) पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि बकरे की कुर्बानी से पहले उसके दांत गिने जाते हैं। दरअसल दांत गिनकर बकरे की उम्र का पता लगाया जाता है क्योंकि कुर्बानी एक साल के बकरे की ही दी जाती है। उससे कम उम्र के बकरे की कुर्बानी जायज नहीं होती। जब बकरे के दांत 4-6 हो तो माना जाता है कि वह एक साल का है। उससे कम दांत होने पर उसकी कुर्बानी नहीं दी जाएगी।

Bakrid पर कुर्बानी के बकरे खरीदते वक्त कई बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। कुर्बानी के लिए जानवर खरीदने के कुछ नियम तय है। जैसे बकरा या कुर्बानी का कोई भी जानवर बीमार न हो, उसे कोई चोट न लगी हो। बकरे के सींग टूटे हुए न हों और उसकी उम्र एक साल हो गई हो। जब आप बकरा खरीदने जाएं तो बकरे की अच्छे से जांच कर लें कि वह बीमार तो नहीं है। कुर्बानी के बकरे और जिबह (वध) करने वाले का मुंह किबला (मक्का में काबा) की तरफ होना चाहिए।
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