डेस्क। शादी के कुछ वक्त बाद ही यदि कोई महिला अपने पति को खो देती है, तो भारत (India) के कुछ हिस्सों में उसका फिर से विवाह करवाया जाता है। इसे करेवा विवाह (Kareva marriage) कहा जाता है। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में ऐसा ज्यादा देखने को मिलता है। करेवा विवाह काफी अलग होता है। यह एक प्रथा (tradition) की तरह निभाया जा रहा है। आइए जानें, करेवा विवाह क्या होता है? क्या करेवा विवाह (Kareva marriage) कानूनी तौर पर सही है?
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करेवा विवाह (Kareva marriage) उत्तर भारत (India) के कई राज्यों जैसे हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रचलित है। इसके तहत, अगर किसी महिला की शादी के कुछ ही सालों के अंदर उसके पति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी शादी उसके देवर यानी पति के छोटे भाई से करवा दी जाती है। इसी को करेवा विवाह कहा जाता है। यह फैसला खुद परिवार वाले लेते हैं। इससे एक विधवा को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिल जाती है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में करेवा विवाह को लेकर कोई सीधा जिक्र नहीं मिलता। हालांकि कुछ कोर्ट केसेस में इसे कानूनी तौर पर वैध माना गया है। हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 में सामान्य विवाह को लेकर कई नियम तय किए गए हैं। इस प्रथा को आज भी समुदाय परंपरा के तौर पर आगे बढ़ाया जा रहा है। साल 2022 में एक मामले में कोर्ट ने करेवा विवाह को वैध ठहराया था। करेवा विवाह (Kareva marriage) से पैदा होने वाले बच्चे को संपत्ति में भी हिस्सा दिलवाया जाता है।
हालांकि, इस तरह के मामलों में यह साबित करना पड़ता है कि विवाह समुदाय की प्रथा के अनुसार हुआ है। रजिस्ट्रेशन और डॉक्यूमेंटेशन के बिना विवाह किया जाता है, तो इससे बच्चों को हक दिलवाने में दिक्कत आती है। यह सिर्फ समाज की कुछ मान्यताओं पर टिका हुआ है, लेकिन इसमें बच्चों के अधिकार को लेकर कानूनी दिक्कतें होती हैं।
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