डेस्क। गंगा किनारे बसा पुरातन संस्कृति की कहानी वाला शहर बनारस, वाराणसी (Varanasi) और काशी (Kashi) के नाम से भी प्रसिद्ध है। मुगलकाल और अंग्रेजी शासन के दौरान उत्तर प्रदेश के (Uttar Pradesh) इस शहर का आधिकारिक नाम बनारस ही था। गंगा किनारे बसा काशी शहर को लेकर ऐसा कहा जाता है कि इस शहर में जो आता है वह यहीं का होकर रह जाता है।
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क्या आपने कभी सोचा कि शिव की नगरी काशी (Kashi) को वाराणसी क्यों कहा जाता है। अगर आपको इसके पीछे के कारण के बारे में नहीं पता है, तो इस लेख में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि बनारस का नाम वाराणसी (Varanasi) क्यों पड़ा?
असल में काशी (Kashi) का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना इतिहास इस शहर के नाम के पीछे भी है। पौराणिक कथा के अनुसार बनारस का नाम काशी प्रचीनकाल के एक राजा काशा के नाम पर पड़ा, करीब 3000 बरसों से बनारस को काशी बोला जा रहा है। शिव नगरी काशी का नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है प्रकाश फैलाने वाला होता है। इस नगरी को ‘मोक्ष की नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां प्राण छोड़ने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बनारस का ऑफिशियल नाम वाराणसी है। अब ऐसे में सवाल यह आता है कि आखिर वाराणसी नाम कहां से आया, तो बता दें कि काशी (Kashi) में बहने वाली दो नदियों के नाम पर वाराणसी पड़ा है। वरुणा नदी से लेकर अशी नदी तक के क्षेत्र को वाराणसी (Varanasi) कहा गया है। इसमें एक ओर उत्तर में वरुणा नदी बहती है और दूसरी ओर दक्षिण में असि नदी बहती है।
इन दोनों नदियों के बीच बसे होने के कारण इस शहर को वरुणा-असि यानी वाराणसी (Varanasi) कहा जाने लगा। पुराणों के अनुसार काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है। कैलाश के बाद शिव का निवास स्थान काशी ही माना जाता है। काशी के कण-कण में शिव वास करते हैं। यहीं जीवन का प्रारंभ और अंत भी होता है। हिंदू, जैन, बुद्ध धर्म के लोगों के लिए तीर्थ स्थल है।
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