तमिलनाडु। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) ने नई शिक्षा नीति में तीन-भाषा नीति को लेकर चल रहे विवाद पर तमिलनाडु (Tamil Nadu) में सत्ताधारी पार्टी डीएमके की कड़ी आलोचना की। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को लोकसभा में DMK सदस्यों के विरोध करने पर अपने वक्तव्य से एक शब्द वापस ले लिया। संसद में जिस तीन भाषा नीति (three-language policy) मामले में घमासान मचा हुआ है; उस विवाद के पीछे आखिर क्या वजह है, चलिए बताते हैं आपको।
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दरअसल केंद्र सरकार ने देश के हर जिले में नवोदय विद्यालय स्थापित किए हैं। नियम के अनुसार हर नवोदय विद्यालय में छठी से नौवीं तक तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं। इनमें हिंदी और अंग्रेजी (English) अनिवार्य हैं और तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। तमिलनाडु (Tamil Nadu) सरकार को हिंदी से इतनी आपत्ति थी कि अब तक राज्य के किसी भी जिले में कोई नवोदय स्कूल नहीं खुला है। तमिलनाडु छोड़कर देश के सभी राज्यों में छात्रों को तीन भाषाएं (three-language) पढ़ाई जाती हैं लेकिन तमिलनाडु में छात्र सिर्फ तमिल और अंग्रेजी ही पढ़ते हैं।
1948-49 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अगुआई वाले विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने इस विषय पर विस्तार से जांच की थी और कहा था कि अचानक से अंग्रेजी की जगह हिंदी को आधिकारिक भाषा बना देना उचित नहीं होगा। आयोग ने कहा था कि हिंदी को संघीय भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए और स्थानीय भाषाएं राज्यों के लिए होनी चाहिए। धीरे-धीरे करके अंग्रेजी (English) को हटाया जा सकता है। इसके लिए पूरे देश में हिंदी का प्रचार प्रसार जरूरी है। इसी आधार पर देश की शिक्षा नीतियां तय की गईं और हर बार तमिलनाडु (Tamil Nadu) ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया।

आयोग ने कहा था कि कॉलेज में पढ़ने वाले हर छात्र को अपनी क्षेत्रीय भाषा के अलावा देश की कोई दूसरी भाषा का भी ज्ञान होना चाहिए। इसके साथ ही वह अंग्रेजी (English) पढ़ने-लिखने में भी सक्षम हो। यहीं से तीन भाषा वाले फॉर्मूले की शुरुआत हुई। इस प्रस्ताव को 1964-66 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने स्वीकार किया और इसे इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में शामिल किया गया। राजीव गांधी सरकार द्वारा पारित 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति और 2020 की नवीनतम एनईपी में भी इस फॉर्मूले को को बरकरार रखा गया है।
नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि हर स्कूल में तीन भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। 2020 की एनईपी में हिंदी का कोई उल्लेख नहीं है। नीति में कहा गया है कि बच्चों को पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद होंगी। हालांकि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं होना जरूरी है। इसका मतलब यह है कि एक राज्य कोई भी दो भारतीय भाषाएं सिखा सकता है, जिनमें से कोई भी हिंदी और अंग्रेजी (English) नहीं है। तमिलनाडु (Tamil Nadu) में फिलहाल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है।
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