डेस्क। आज पूरे देश में सकट चाैथ (Sakat Chauth) का व्रत रखा गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर यह व्रत रखा जाता है। इस दिन विशेष सामग्रियों से भगवान गणेश (Lord Ganesha) की पूजा की जाती है। सकट चौथ (Sakat Chauth) की पूजा माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छी सेहत और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती हैं।
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चतुर्थी तिथि पर व्रत रखने के बाद चंद्रमा का दर्शन अवश्य किया जाता है। ऐसे में 21 जनवरी की रात को सकट चौथ (Sakat Chauth) पर चंद्रमा 09 बजकर 05 मिनट पर होगा। ऐसे में जो महिलाएं सकट चौथ का व्रत रखेंगी वे पूजा (worship) के बाद चंद्रमा के दर्शन करते हुए जल अर्पित करें और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
मान्यता है कि निर्जला व्रत कर विधि विधान से गणेश जी (Lord Ganesha) की पूजा करने से गणपति की कृपा भक्तों पर सदैव बनी रहती है। इसे पीछे ये कहानी है कि एक बार एक नगर में एक कुम्हार (potter) रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आवा लगाया तो आवा पका ही नहीं। ऐसे में परेशान होकर कुम्हार (potter) राजा के पास गया। तब राजा (king) ने पंडित को बुलाकर इसके पीछे की वजह जाननी चाही। पंडित ने कहा हर बार आवा जलाते समय आपको एक बच्चे की बलि देनी होगी। इससे वह पक जाएगा। जब बली की बारी आई तब हर परिवार से एक दिन एक बच्चा बलि के लिए भेजा जाता था। इसी तरह कुछ दिन बीते और कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई।
हालांकि बुढ़िया दुनिया में अकेली थी और उसका एकमात्र सहारा उसका बेटा था। ऐसे में वो राजा (king) के पास गई और बोली कि, “मेरा एक ही बेटा है और वह भी अब इस बलि के चक्कर में मुझसे दूर हो जाएगा”। हालांकि बुढ़िया को एक उपाय सूझा उसने अपने बेटे को सकट (Sakat Chauth) की सुपारी और दूब का बेड़ा देकर कहा तुम भगवान का नाम लेकर आवा में बैठ जाना सकट माता (Sakat Chauth) तुम्हारी रक्षा करेंगी। ऐसे में जब अगले दिन बुढ़िया के बेटे को आवा में बिठाया गया तब बुढ़िया अपने बेटे की सलामती के लिए पूजा करने लगी।
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जिसके प्रभाव से जो आवा पहले पकने में कई दिन लग जाते थे इस बार वह एक ही रात में पक गया और सुबह जब कुमार ने आवा देखा तो आवा भी पक चुका था और बुढ़िया के बेटे का भी बाल बांका नहीं हुआ था। सकट माता (Sakat Chauth) की कृपा से नगर के अन्य बच्चे जिनकी बलि दी गई थी वह भी जाग उठे। तभी से नगर वासियों ने मां सकट की महिमा को स्वीकार कर सकट माता (Sakat Chauth) की पूजा और व्रत का विधान शुरू कर दिया।
हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार हर वर्ष सकट चौथ (Sakat Chauth) का व्रत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर रखा जाता है। इस वर्ष चतुर्थी तिथि 21 जनवरी की सुबह 08 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 22 जनवरी की सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगी।
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