डेस्क। आज यानि कि मेष संक्रांति (Mesh Sankranti) के दिन सतुआन का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है। उत्तर भारत (North India) के कई राज्यों में इसे सतुआन (Satuan festival) के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने-अपने कुल देवताओं का पूजन करते हैं। उसके बाद आटा, सत्तू, आम्रफल के साथ शीतल पेय जल, पंखा अर्पित करते हैं। इस मास का एक नाम मधुमास भी है।
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मिथिला में इसे नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन जल की पूजा की जाती है और शीतला माता से शीतलता बनाए रखने की कामना की जाती है। ये दो दिवसीय पर्व होता है। जिसके पहले दिन 14 अप्रैल को सतुआन (Satuan festival) तो दूसरे दिन 15 अप्रैल को धुरलेख होता है। जिस तरह से छठ सूर्य देव की उपासना का पर्व होता है ठीक वैसे ही जुड़ शीतल जल की पूजा का पर्व होता है।

मान्यता है कि इस दिन अपने पितरों को तर्पण कर उनके निमित यथा शक्ति दान करते हैं। इसके बाद बैसाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से भगवान बद्रीनाथ की यात्रा की शुरुआत होगी। महिलाएं इस दिन (Satuan festival) व्रत रखती हैं और अपने परिवार की सुख-शांति तथा समृद्धि की कामना करती हैं। सूर्यदेव और अन्य ग्राम देवताओं की पूजा की जाती है। गांवों में लोग तालाब या नदी में स्नान कर पवित्रता प्राप्त करते हैं।

सतुआन पर्व (Satuan festival) शीतला माता को समर्पित एक धार्मिक त्योहार है जो विशेष रूप से मिथिला क्षेत्र में मनाया जाता है। यह नववर्ष के रूप में मनाया जाता है और इसमें जल की पूजा की जाती है, साथ ही शीतला माता से शीतलता और स्वास्थ्य की कामना की जाती है। सतुआन पर्व का शीतला माता से संबंध इसलिए है क्योंकि शीतला माता को शीतलता, स्वास्थ्य और स्वच्छता की देवी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन बासी जल के छिड़काव से घर शुद्ध हो जाता है और परिवार पर पूरे साल शीतलता बनी रहती है।
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