डेस्क। महिलाओं की साड़ी (sarees) का रंग और डिजाइन सिर्फ स्टाइल तक सीमित नहीं होता है। हर साड़ी के पीछे एक सालों पुरानी कहानी, जो उसे सबसे अलग बनाती है। केरल की कासवु साड़ी (Kasavu saree) का इतिहास भी बहुत दिलचस्प है। जिसका रंग सफेद होता है और बॉर्डर गोल्ड। ओणम (Onam) जैसे कई मौकों पर केरल (Kerala) की महिलाएं इस साड़ी को जरूर पहनती हैं।
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कासवु का अर्थ जरी होता है। यह शब्द इस साड़ी को बनाने वाली जरी से जुड़ा है। इसी कारण जब पुरुषों की जरी वाली धोती को तैयार किया जाता है, तो उसे कासवु मुंडू कहा जाता है। यहां मुंडू का मतलब धोती है और कासवु (Kasavu saree) का मतलब जरी। कासवु साड़ी का इतिहास महाराजा बलराम वर्मा और उनके मुख्यमंत्री उम्मिनी थम्पी से जुड़ा है। इस साड़ी को बनाने के लिए महाराजा बलराम वर्मा ने तमिलनाडु के बुनकरों को केरल बुलाया।

उसी दौर से बलरामपुरम में कासवु साड़ियों (Kasavu saree) का निर्माण किया जा रहा है। अब बलरामपुरम को इसी कासवु साड़ी से जाना जाता है। यह केरल की संस्कृति का अहम हिस्सा बन चुकी है। कासवु साड़ियां बहुत ही महंगी होती हैं। असल में इन्हें बनाने के लिए असली सोने का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बनाने के लिए बहुत ही बारीक धागों में सोने को पिरोया जाता है। यही कारण है कि इस साड़ी की कीमत लाखों में भी चली जाती है। वक्त की डिमांड के साथ इसे बनाने के तरीके में भी कई तरह के बदलाव आ चुके हैं। अब इसे बिना सोने के भी बनाया जाता है।
केरल की महिलाएं हर खास मौके पर कासवु साड़ी (Kasavu saree) पहनती हैं। असल में सफेद रंग की इस साड़ी का गोल्ड बॉर्डर धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण से महिलाएं खास मौकों पर इसे सौभाग्य के लिए पहनती हैं। मान्यताएं हैं कि इससे पॉजिटिविटी आती है। इसका सफेद रंग शुद्धता को दिखाता है। बता दें कि एक सिंपल सी कासवु साड़ी को तैयार करने में 3 से 5 दिन का समय लगता है।
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