डेस्क। 14 अप्रैल को पूरा देश संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाएगा। भारतीय संविधान (Constitution) के जनक बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (Baba Saheb Ambedkar) आजीवन कमजोर और निचले तबके के लोगों, मजदूरों और महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत रहे। छुआछूत, जात-पात (casteism) और वर्ण व्यवस्था से वह बेहद आहत रहते थे। इनको पूरी तरह से खत्म करना चाहते थे, जिसके लिए काफी कोशिशें भी कीं।
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संविधान (Constitution) पर भी इसका असर दिखता है। हालांकि एक वक्त ऐसा भी आया, जब उन्होंने (Baba Saheb Ambedkar) हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। 14 अक्टूबर 1956 को आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने ऐसा क्योंं किया और बौद्ध धर्म (Buddhism) को ही क्यों अपनाया?
बाबा साहेब (Baba Saheb Ambedkar) ने यूं ही बौद्ध धर्म (Buddhism) नहीं स्वीकार कर लिया था बल्कि उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने लंबे समय तक सभी धर्म के ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और फिर इस नतीजे पर वह पहुंचे। बाबा साहेब को बौद्ध धर्म की तीन बातें बेहद पसंद आईं। वह बौद्ध धर्म के अंधविश्वास और अति प्रकृतिवाद की जगह अपने दिमाग के प्रयोग के सिद्धांत से काफी प्रभावित थे इसके साथ ही उनको करुणा और समानता के सिद्धांत ने भी खूब प्रभावित किया जिसकी वह तलाश कर रहे थे।

अंबेडकर (Baba Saheb Ambedkar) हमेशा मानते थे कि वह जिस धर्म में पैदा हुए हैं उस धर्म में वह अपनी अंतिम सांस नहीं लेगें। उनकी हिंदू धर्म में समानता लाने की तमाम कोशिश नाकामयाब रही थी जिससे उन्हें आघात लगा था। ऐसे में 1956 में जब 14 अक्टूबर को उन्होंने बौद्ध दर्म कबूल किया तो उनके पास और भी कई धर्म को कबूलने का मौका था लेकिन उन्होंने पहले सभी धर्मों के बारे में पर्याप्त जानकारी ली और फिर बौद्ध धर्म कबूल किया। बता दें कि उनकी इस घोषणा के साथ तब ईसाई मिशनरियों और कई इस्लामिक संगठनों के द्वारा खूब पैसे पाने का ऑफर भी मिला ताकि वह इनमें से कोई धर्म कबूल कर लें।
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