पटना। बिहार में इन दिनों राजनीतिक माहौल गर्म है। ऐसे में तमाम राजनीतिक किस्से सामने आ रहे हैं जो काफी दिलचस्प हैं। आज हम आपको ऐसा ही एक वाकया बताने जा रहे हैं जिनको पार्टी सुप्रीमो ने चाय (tea) पिलाने के बहाने बुलाया और नेताजी के सपनों पर पानी फेर दिया। मामला वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव का है। एक समाजसेवी को राजनीति में सेवा करने का शौक चढ़ा। कथित समाजसेवा से ही वे धन कुबेर बन गए थे।
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पार्टी के सुप्रीमो ने उन्हें पटना बुलाकर ब्रह्मपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का सिंबल भी थमा दिया। इसी बीच विरोधी गुट के लोगों ने नेताजी के समाजसेवा के नाम पर काली करतूत की पूरी कुंडली पार्टी सुप्रीमो के सामने खोल दी। यह सुनकर सुप्रीमो के होश फाख्ता हो गए।

उधर नेताजी का काफिला कोईलवर के पास पहुंचा था। बीच रास्ते में आने पर सुप्रीमो ने नेताजी को फोन कर तुरंत चाय पीने के लिए वापस पटना आने का संदेश सुनाया। इससे नेताजी और उनके समर्थकों की खुशी और बढ़ गई। पटना पहुंचकर सुप्रीमो के साथ बैठकर चाय की चुस्की ली, लेकिन चाय का स्वाद उस समय फीका पड़ गया, जब सुप्रीमो ने त्रुटि होने की बात कहकर सिंबल को वापस ले लिया और कहा कि आपको बाद में खबर दी जाएगी लेकिन दूसरे दिन सच्चाई सामने आ गई।
सिंबल वापसी के बाद फूल माला के खर्च का हिसाब जोड़कर नेताजी काफी उदास हुए, तो उनके शिष्यों ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने की प्रेरणा देते हुए जीत का दावा भी कर दिया। नेताजी निर्दलीय प्रत्याशी बनकर मैदान में कूद गए लेकिन समाजसेवा का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और चुनाव में हाशिए पर चले गए।
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