डेस्क। तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) को ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में शुक्रवार को लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया। यह कार्रवाई संसद की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर की गई, जिसमें महुआ (Mahua Moitra) पर ‘अनैतिक आचरण’ और ‘गंभीर रूप से ख़राब आचरण’ का दोषी पाते हुए उनके निष्कासन की सिफ़ारिश की गई थी।
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खैर चलिए आपको बताते है अब महुआ (Mahua Moitra) के पास कौंन से विकल्प बचे हैं। टीएमसी (TMC) सांसद के पास अपने निष्कासन को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती देने का विकल्प खुला है। दरअसल संविधान (Constitution) का अनुच्छेद 122 स्पष्ट तौर पर कहता है कि संसदीय कार्यवाही को प्रक्रियाओं में अनियमितता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा के मुताबिक महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) तीन विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसके अलावा वे चाहे तो फैसले की समीक्षा करने के लिए संसद (Parliament) से अनुरोध करें। हालांकि ये संसद के विवेक पर निर्भर करेगा कि वे इस पर पुनर्विचार करेगी या नहीं। तीसरा मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के सीमित मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का रुख करें। चौथा, फैसले को स्वीकार करें और 4 महीने में फिर से चुनाव लड़ें।
लगभग ऐसा ही मामला साल 2007 में भी सामने आया था। तब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजा राम पाल केस में कहा था कि ‘इस तरह की पाबंदी सिर्फ़ प्रक्रिया में अनियमितताओं के संबंध हैं, लेकिन कुछ मामले ऐसे हो सकते हैं जहां पर न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है।’
बीएसपी के सांसद रहे राजा राम पाल उन 12 सांसदों में से थे, जिन्हें साल 2005 के ‘कैश फ़ॉर वोट’ मामले में शामिल होने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। निष्कासित सांसदों की याचिका को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ ने 4-1 के बहुमत से ख़ारिज कर दिया था और उनके निष्कासन को बरक़रार रखा था। जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन सांसदों का निष्कासन संसद ने ‘अपनी सुरक्षा’ के लिए किया है।
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