डेस्क। पॉलीग्राफ टेस्ट (LIE DETECTOR TEST) और नार्को टेस्ट (narco test) दोनों ही सच्चाई का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन उनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। पॉलीग्राफ टेस्ट (polygraph test) एक ऐसा परीक्षण है, जो सच जानने के लिए इंसान की फिजिकल और मेंटल एक्टिविटी को नापता है। टेस्ट के दौरान कुछ सवाल किए जाते हैं।
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इन सवालों के जवाब देते वक्त मशीन इंसान की सभी तरह की एक्टिविटी का चार्ट तैयार करती है। इस टेस्ट (polygraph test) को साल 1921 में ईजाद किया था। इसे अमेरिकन पुलिसकर्मा और फिजियोलॉरिस्ट जॉन ए लार्सन ने बनाया था। भारत में नार्को या पॉलीग्राफ टेस्ट (polygraph test) को करने के लिए कोर्ट से परमिशन लेनी पड़ती है। अदालत गंभीर मामलों में अपराधियों को देखते हुए ही इस परीक्षण की अनुमति देते हैं।

नार्को परीक्षण या नार्को एनालिसिस (narco test) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति को कुछ दवाएं दी जाती हैं, जो व्यक्ति को आंशिक रूप से अचेत अवस्था में ले जाती हैं। इस तकनीक का उपयोग मुख्य रूप से उन लोगों से छिपी हुई जानकारी निकलवाने के लिए किया जाता है जो नियमित पूछताछ के दौरान सहयोग करने के इच्छुक नहीं होते। जानकारों का मानना है कि जटिल मामलों को सुलझाने और महत्वपूर्ण सुरागों को उजागर करने के लिए नार्कोएनालिसिस टेस्ट (narco test) किया जाता है।
ये होता है अंतर:
पॉलीग्राफ टेस्ट (polygraph test) या लाइ डिटेक्टर टेस्ट में आरोपी की फिजिकल एक्टिविटी जैसे, हार्टबीट, नाड़ी, श्वसन दर और पसीना को नोट किया जाता है। वहीं नार्को टेस्ट में आरोपी को इंजेक्शन द्वारा सोडियम पेंटोथल दवा दी जाती है। इससे वो बेहोश होता है लेकिन उसका दिमाग करता रहता है। इसके बाद आरोपी से सवाल किए जाते हैं। इस टेस्ट के बाद ज्यादातर अपराधी सच कबूल कर लेते हैं।
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