फतेहपुर। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर (Fatehpur) जिले में एक ऐसी जगह है; जिसे दूसरे ‘जलियांवाला बाग़’ (Jallianwala Bagh) के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर एक इमली का पेड़ अंग्रेजी (British) क्रूरता का गवाह है। करीब 200 साल पहले इस पेड़ पर अंग्रेजों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों (revolutionaries) को फांसी के फंदे पर लटका दिया था। एक महीने तक सभी का शव ऐसे ही लटका रहा। इस पेड़ को आज ‘बावन इमली’ (Bavni tamarind) के नाम से जाना जाता है।
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बावनी इमली (Bavni tamarind), जो फतेहपुर जिले के खजुहा में स्थित है, इसमें नई शाखाएं नहीं निकलती हैं। ऐसा माना जाता है कि 28 अप्रैल 1858 को, 52 स्वतंत्रता सेनानियों (freedom fighters) को इस पेड़ पर फांसी दिए जाने के बाद से इसका विकास रुक गया है। यह पेड़ एक शहीद स्मारक के रूप में जाना जाता है और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का प्रतीक है।
बावनी इमली (Bavni tamarind) का अपना अलग ही इतिहास और महत्व है। इसके पीछे एक लंबी कहानी है। बात 1857 के दौर की है, अंग्रेजों के जुल्मों सितम से लोग परेशान थे। तभी खजुहा ब्लॉक के रसूलपुर गांव निवासी देशभक्त और महान स्वतंत्रता सेनानी ठा.जोधा सिंह अटैया ने ब्रिटिश सेना की नीद हराम कर रखी थी। लोगों को इकठ्ठा कर उनमें देश भक्ति की भावना भी जगा रहे थे। इससे परेशान अंग्रेजों ने उन्हें जान से मारने की रणनीति बनाई। 28 अप्रैल 1858 को जोधा सिंह अपने 51 साथियों के साथ लौट रहे थे।

मुखबिर ने इसकी सूचना अंग्रेज अफसरों को दे दी। अंग्रेजों ने चारों तरफ से घेरकर धोखे से इन 52 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद अंग्रेजों ने इसी इमली के पेड़ पर इन सभी क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया। यहीं पर कई मीटर ऊंचा स्तभ बना है। इसपर देश के लिए जान न्योछावर करने वाले वीर सपूतों की गाथा लिखी है। वहीं पेड़ (Bavni tamarind) के सामने 3 स्तंभ भी बने हैं, जिस पर शहीद होने वाले सभी 52 लोगों के नाम और पते दर्ज हैं। वहीं इस स्थल पर महान स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद ठाकुर जोधा सिंह अटैया की विशाल प्रतिमा लगी है।
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