डेस्क। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण (Uttarayan) में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष के आधार पर देखें तो इस दिन वह अपने पुत्र शनि के घर मकर राशि में आते हैं। इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) की पूजा में काले तिल का खास महत्व है।
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इस दिन तिल से ही सूर्य देव की पूजा (worship) की जाती है। भगवान शिव को भी तिल अर्पित किया जाता है तो साथ ही तिल-गुण का प्रसाद भी इसी दिन खाया जाता है। कई स्थानों पर लोग जल में तिल डाल कर स्नान भी करते हैं। कहते हैं कि मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से दिन तिल भर जितना बड़ा होना शुरू हो जाते है और अब से रात छोटी और दिन बड़े होने लग जाती हैं। तिल का संबंध धार्मिक, मांगलिक, पूजा पाठ (worship) और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी विशेष महत्व है।
तिल को भी गंगा नदी की तरह ही पवित्र माना गया है क्योंकि जिस तरह गंगा श्रीहरि के चरणों से निकलती हैं, वैसे ही तिल भी भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के शरीर से उत्पन्न हुआ था इसलिए तिल विष्णुजी (Lord Vishnu) को प्रिय है। साथ ही मकर राशि के स्वामी शनि और सूर्य के विरोधी राहु के होने से दोनों के विपरीत फल के निवारण के लिए तिल का खास प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही उत्तरायण (Makar Sankranti) में सूर्य की रोशनी में प्रखरता आ जाती है। मान्यता है कि तिल के दान करने से और खिचड़ी खाने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही इससे राहु और शनि के दोष का भी नाश होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य जब राशि परिवर्तन करते हुए मकर राशि में जाते हैं, तब मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व मनाया जाता है। मकर राशि के स्वामी शनिदेव हैं, जो सूर्यदेव के पुत्र हैं, फिर भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए मकर संक्रांति (Makar Sankranti) तिल का दान और सेवन लाभकारी माना जाता है। साथ ही मान्यता यह भी है कि माघ मास में जो व्यक्ति रोजाना भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा तिल से करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इसीलिए इस दिन किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए।
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