नई दिल्ली। सरकारें आबकारी कर (excise duty) के नाम पर शराब (liquor) की ब्रिकी पर टैक्स वसूलती हैं। आपको जानकारी हैरानी होगी कि किसी भी राज्य के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा शराब (liquor) की बिक्री से आता है। यही कारण है कि कोई भी सरकार (government)शराब बंदी जैसा निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचती है। दरअसल राज्य के रेवेन्यू का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब की बिक्री से आता है।
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देश के चंद राज्यों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर राज्य शराब (liquor) की बिक्री पर भारी भरकम टैक्स वसूलती हैं और अपना खजाना भरते हैं। क्या आपको शराब पर लगने वाले टैक्स के बारे में पता है? दरअसल, ऐसे मामलों में हर राज्य की सरकार अगल-अलग टैक्स वसूलती है। इसीलिए कुछ राज्यों में एक जैसी शराब महंगी मिलती है, तो कुछ राज्यों में सस्ती। वहीं एक्साइज ड्यूटी के अलावा भी शराब पर स्पेशल सेस, ट्रांसपोर्ट फीस, लेबल, रजिस्ट्रेशन जैसे चार्ज लगते हैं।

मान लीजिए कि कोई व्यक्ति 1000 रुपये की शराब (liquor) की बोतल खरीदता है तो उसे 35 से 50 फीसदी या इससे भी ज्यादा कर देते हैं। यानी जब आप एक हजार रुपये की शराब की बोतल खरीदते हैं तो 350 से 500 रुपये तक सरकार के खजाने में जाते हैं। शराब की बिक्री किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य जरिया होती है।
आंकड़ों को देखें तो एल्कोहल पर एक्साइज कलेक्शन के मामले में गोवा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्य आगे हैं। यहां एक्साइज कलेक्शन काफी ज्यादा होता है। रिपोर्ट्स की बात करें तो 2020-21 में सरकार ने एक्साइज ड्यूटी से लभगग 1 लाख 75 हजार करोड़ रुपये की कमाई की थी। इस मामले में उत्तर प्रदेश राज्य सबसे आगे है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में उत्तर प्रदेश ने एक्साइज ड्यूटी से 41,250 करोड़ का राजस्व वसूला था।
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