लखनऊ। लखनऊ की ऐतिहासिक मोती झील (Moti Jheel) पर हो रहे अतिक्रमण के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने धारा 67 के अंतर्गत पहले से पारित आदेशों का पालन न होने पर नाराज़गी जताई है। न्यायालय ने कहा कि यदि धारा 67 के तहत कार्रवाई का आदेश पहले ही दिया जा चुका था, तो अब तक उस पर अमल क्यों नहीं हुआ?
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यह मामला सैय्यद अली हसनैन आब्दी, पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण वादी लखनऊ द्वारा दायर जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसकी प्रति में दर्ज विवरण के अनुसार याचिका पर 5 अगस्त 2025 को सुनवाई हुई है। याचिका में अधिवक्ता राजेश कुमार कश्यप ने बहस प्रस्तुत की, जिसमें Moti Jheel की वर्तमान स्थिति, उसके संरक्षण, सीमांकन और अतिक्रमण को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है।

अदालत ने सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी लखनऊ और प्रमुख सचिव, राजस्व विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार समेत पुलिस और एलडीए के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे Moti Jheel की वर्तमान स्थिति और धारा 67 के अंतर्गत पूर्व आदेशों के अनुपालन का विस्तृत पॉइंट-वाइज़ काउंटर एफिडेविट प्रस्तुत करें। न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी कि यदि धारा 67 के आदेशों के बावजूद जानबूझकर लापरवाही सामने आई, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।
क्या है धारा 67?
यह धारा नगर निगम को यह शक्ति देती है कि वह नगर निगम की सार्वजनिक संपत्तियों, जलाशयों, तालाबों, सड़कों या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर हुए अवैध कब्जे या अतिक्रमण को नोटिस देकर हटवा सके। यदि नोटिस के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटता तो नगर निगम पुलिस बल की मदद से जबरन हटाने का अधिकार रखता है।
(रिपोर्ट- राजेश कुमार, लखनऊ)
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