लाइफस्टाइल डेस्क। आज मोबाइल हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का सबसे जरूरी हिस्सा बन चुका है। सुबह अलार्म से लेकर रात तक स्क्रीन हमारे हाथों में रहती है। ऐसे में एक सवाल बार-बार उठता है क्या मोबाइल फोन सच में कैंसर (disease) का कारण बन सकता है?
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मोबाइल फोन रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सिग्नल छोड़ते हैं। यह वही प्रकार की गैर-आयनीकृत (non-ionizing) रेडिएशन होती है जो हमारे आस-पास मौजूद वाई-फाई या एफएम रेडियो में होती है। इस तरह की रेडिएशन में डीएनए को नुकसान पहुंचाने की क्षमता नहीं होती, यानी यह उन श्रेणियों में नहीं आती जो कैंसर के जोखिम से जुड़ी मानी जाती हैं।
इसके विपरीत X-ray, CT Scan या UV Rays जैसी आयनीकृत (ionizing) रेडिएशन DNA में बदलाव ला सकती हैं और इनके बारे में वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। अब तक हुई रिसर्च में ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला कि मोबाइल फोन का सीधे-सीधे कैंसर से संबंध है। अध्ययन जरूर चल रहे हैं लेकिन निष्कर्ष अभी तक यही है कि मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन कैंसर पैदा नहीं करती।

हालांकि कैंसर से सीधा संबंध नहीं पाया गया है लेकिन मोबाइल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कई अन्य समस्याएं जरूर बढ़ाता है। लगातार स्क्रीन देखने से सिर दर्द, नींद में बाधा क्योंकि स्क्रीन की नीली रोशनी नींद के हार्मोन को प्रभावित करती है, ध्यान भंग होना, तनाव और मानसिक थकान होता है। कॉल पर बातचीत करते समय ईयरफोन का इस्तेमाल करें ताकि फोन सीधे शरीर से दूर रहे। सोते समय मोबाइल को बिस्तर से दूर रखें। बेहतर होगा इसे कमरे के बाहर ही चार्ज करें। दिन में कुछ समय नो-फोन टाइम रखें- जैसे भोजन के दौरान, पढ़ते समय या सोने से एक घंटे पहले।
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