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Friday, April 25, 2025

आप जानते हैं क्या होता है कलमा? जानिए मुसलमान इसे कब और क्यों पढ़ते हैं

डेस्क। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam) में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस टेरर अटैक (terror attack) में निर्दोष पर्यटकों की अपनी जान गंवानी पड़ी और उनका कसूर केवल इतना था कि वह हिंदू थे। आतंकियों ने कुछ पर्यटकों से कलमा (Kalma) पढ़ने को कहा और जो लोग ऐसा नहीं कर पाए उन्हें सरेआम गोली से उड़ा दिया। उस समय असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने अपनी जान कलमा पढ़कर बचाई।

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इस आतंकी घटना के बाद सभी के मन में सवाल है कि आखिर इस्लाम (Islam) में कलमा क्या है और इसकी अहमियत क्या है? इस्लाम धर्म की बुनियाद सदियों पहले दुनिया के पहले इंसान हजरत आदम अलैहिस्सलाम के साथ हुई। 1450 साल पहले इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने इसके पांच स्तंभ कलमा (Kalma), नमाज, रोजा, जकात और हज बनाएं। जिनमें कलमा इस्लाम (Islam) का पहला सिद्धांत है।

कलमा (Kalma) का इस्लामिक अर्थ है ‘शहादत’ यानी ‘गवाही’ या ‘शपथ’। इस्लाम में दाखिल होने के लिए पहला कलमा तय्यब पढना आवश्यक है, जिसे दो भागों में पढ़ा जाता है, ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि इसका अनुवाद है “अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और हजरत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहिवसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।” गुलाम रसूल देहलवी ने बताया कि अल्लाह वह ईश्वर है, जिसकी मुसलमान पूजा करते हैं और जिसके आगे झुकते हैं।

कलमा (Kalma) का मतलब होता है कि घोषणा करना। यह बताता है कि इंसान अल्लाह पर भरोसा रखता है और पैगंबर मुहम्मद को उसका सच्चा भेजा हुआ रसूल मानता है। इस्लाम की नींव कलमा-ए-तैय्यब से ही रखी जाती है। जब कोई इस्लाम को कुबूल करता है, तो कलमा पढ़ना पड़ता है। कलमा एक मुसलमान की आस्था, समर्पण और पहचान का प्रतीक है। कलमा पढ़ने का कोई समय नहीं होता है,लेकिन मुसलमान नमाज के बाद कलमा बार-बार दोहराते हैं।

Tag: #nextindiatimes #Kalma #PahalgamTerrorAttack

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