डेस्क। पहले लोग Gold खरीदकर बस लॉकर्स में रख देते थे लेकिन अब कई अमीर निवेशक इसे ज्वैलर्स, रिफाइनर्स और मैन्युफैक्चरर्स को किराए पर देकर ब्याज कमा रहे हैं। इससे सोना जिसे हमेशा ‘नॉन-यील्डिंग’ यानी बिना ब्याज वाला माना जाता था, अब इनकम देने वाला एसेट बन रहा है।
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भारत में त्योहारों, शादी सीजन और सप्लाई की कमी की वजह से लीज रेट 2-3% बढ़कर 6-7% तक पहुंच गए हैं। डिजिटल गोल्ड ऐप्स और सरकारी गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम ने आम निवेशकों को भी यह मौका देना शुरू कर दिया है। 2025 में लीजिंग वॉल्यूम 2 मिलियन से बढ़कर 40 मिलियन तक पहुंच गया है। कई हाई-नेटवर्थ निवेशक लाखों डॉलर के गोल्ड बार्स को लीज पर देन में दिलचस्पी ले रहे हैं।
कैसे करता है काम:
निवेशक अपना सोना किसी लीजिंग प्लेटफॉर्म या फाइनेंशियल संस्था को देते हैं। प्लेटफॉर्म वह सोना ज्वैलर्स, रिफाइनर्स या मैन्युफैक्चरर्स को उधार देता है। ये कंपनियां उस सोने से आभूषण या प्रोडक्ट बनाती हैं और बेचकर भुगतान करती हैं। निवेशक को ब्याज सोने में मिलता है, जो 2-7% सालाना तक हो सकता है।

लीज खत्म होने पर निवेशक को उतना ही सोना और उस पर मिला अतिरिक्त ब्याज वापस उनके डिजिटल अकाउंट में मिल जाता है। यही वजह है कि इसे पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन और महंगाई से बचाव का अच्छा तरीका माना जा रहा है।
जोखिम:
अगर ज्वैलर या रिफाइनर दिवालिया हो जाए को सोना वापस नहीं मिलता। लीज के दौरान सोने की कीमत बढ़ जाए तो निवेशक उसे बेचने का मौका गंवा देता है। सोना तुरंत वापस न मिल पाने की संभावना रहती है। सोना ट्रांसपोर्ट या इस्तेमाल में खोने, चोरी होने का जोखिम। ब्याज महंगाई या दूसरे निवेश विकल्पों से कम पड़ सकता है।
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