डेस्क। पुराने सोने और नए Gold के बीच का अंतर उनकी उम्र की वजह से नहीं होता। दरअसल यह अंतर आपके द्वारा चुकाई गई कीमत और आपको वापस मिलने वाली कीमत के बीच होता है। भले ही शुद्धता वही रहे लेकिन जौहरी के काउंटर पर आपको मिलने वाला मूल्य काफी अलग होगा।
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जब भी आप नए सोने के गहने खरीदते हैं तब आप उन सभी चीजों के लिए भुगतान कर रहे होते हैं जो कच्चे सोने को एक खूबसूरत आभूषण में बदल देती है। किसी भी नए सोने की मेकिंग चार्जेस शुद्धता के आधार पर सोने की कीमत में शामिल होते हैं और साथ ही इसमें एमआरपी, जीएसटी और कई मामलों में रत्न या फिर सजावटी चीजों की कीमत भी जुड़ जाती है। यह सभी अतिरिक्त शुल्क सोने की अंतिम कीमत को उसके असली मूल्य से काफी ज्यादा बढ़ा सकते हैं।

आपके द्वारा चुकाई जाने वाली राशि का एक हिस्सा पूरी तरह से कारीगरी के लिए होता है असली सोने के लिए नहीं। यही वजह है कि नए सोने की कीमत हमेशा बेचने पर मिलने वाली कीमत की तुलना में ज्यादा ही लगती है। जैसे ही आप उसी गहने को पुराने सोने के रूप में जौहरी के पास वापस लेकर जाते हैं पूरा हिसाब किताब बदल जाता है।
जौहरी सिर्फ सोने के वजन और शुद्धता को ही मापते हैं और मेकिंग चार्जेस, जीएसटी और बाकी किसी भी कीमत को नजरअंदाज कर देते हैं। इसी के साथ जौहरी 5% से 8% के बीच की कटौती लागू करते हैं। यह कटौती पिघलने, रिफायनिंग और परीक्षण को कवर करती है। पुराने सोने का रीसेल वैल्यू हमेशा नए सोने के खरीद मूल्य से कम होगा। भले ही शुद्धता समान हो।
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