डेस्क। पहलगाम (Pahalgam) में 23 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने बदला लेने की ठानी। सेना ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) चलाकर पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर दिया। इसके बाद भारत-पाक में संघर्ष हुआ जिसके बाद सीजफायर (ceasefire) का एलान हुआ। पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में पाकिस्तान (Pakistan) को चेतावनी दी। यह कार्रवाई पहलगाम हमले के गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए की गई।
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आतंकियों ने सिंदूर उजाड़ी तो भारतीय सेना ने बदले के लिए ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) से करारा जवाब दिया। Operation Sindoor भी सिंदूर का महत्व बता रहा है। वैदिक काल में भी स्त्रियां अपनी मांग में सिंदूर लगाती थीं, इस बात के साक्ष्य हमको ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलते हैं। वेदों में बताया गया है कि विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए सिंदूर लगाती थीं।

दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी (Indus Valley) की सभ्यता से भी कुछ ऐसे सबूत मिलते हैं जो बताते हैं कि सिंदूर लगाने की परंपरा तब भी थी। सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिनमें महिलाओं की मांग में सिंदूर लगाने के साक्ष्य हैं। इस काल से जुड़ी देवियों की कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिनके सिर के बीच में एक सीधी रेखा है और उस पर लाल रंग भरा गया है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह और कुछ नहीं बल्कि सिंदूर है।
सिंदूर सबसे पहले किसने लगाया?
शिव पुराण (Shiva Purana) में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने वर्षों तक शिव जी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था। साथ ही उन्होंने कहा था कि जो स्त्री सिंदूर (Sindoor) लगाएगी उसके पति को सौभाग्य और लंबी आयु की प्राप्ति होगी। धार्मिक मतों के अनुसार सबसे पहले माता पार्वती ने ही सिंदूर लगाया था और तभी से ये परंपरा चल पड़ी।
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