डेस्क। नवरात्रि (Navratri) का आरंभ अश्विन माह के शुक्ल पक्ष (Shukla Paksha) की प्रतिपदा तिथि से यानी 3 अक्टूबर से हो रही है। अश्विन माह में आने वाले नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन घटस्थापना के साथ होती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इन 9 दिनों में मां दुर्गा (Maa Durga) की सच्चे दिल से प्रार्थना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन घटस्थापना शुभ मुहूर्त में करना बेहद जरुरी है। मान्यताओं और धर्मग्रंथों के अनुसार, घटस्थापना (Ghatasthapana) और देवी पूजा प्रात: काल में करने का विधान है। लेकिन इसमें चित्रा नक्षत्र (Chitra Nakshatra) और वैधृति योग में करना वर्जित माना गया है। 3 अक्टूबर गुरुवार के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग दोनों नहीं है। इसलिए प्रात: काल घटस्थापना की जा सकती है।
3 अक्टूबर को सुबह में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 6:15 बजे से शुरू है, जो सुबह 7:22 बजे तक है। सुबह में घटस्थापना (Ghatasthapana) का शुभ समय 1 घंटा 6 मिनट है। वहीं दोपहर में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 11:46 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक है। शारदीय नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन इन्द्र योग बन रहा है। यह 3 अक्टूबर को तड़के 3:23 बजे से शुरू होगा और यह 4 अक्टूबर को तड़के 04:24 बजे खत्म होगा। उसके बाद वैधृति योग बनेगा। नवरात्रि (Navratri) के प्रारंभ वाले दिन हस्त नक्षत्र प्रात:काल से लेकर दोपहर 3:32 बजे तक है। उसके बाद से चित्रा नक्षत्र (Chitra Nakshatra) है।
ऐसी मान्यता है कि कलश स्थापना (Ghatasthapana) करने से नकारात्मकता दूर होती है। इससे घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। परिवार के सदस्य निरोगी रहते हैं। घर से बीमारियां दूर होती हैं। कलश को विघ्नहर्ता श्री गणेश जी (Lord Ganesha) का प्रतिरुप भी मानते हैं। कलश के पास पवित्र मिट्टी फैलाकर उसमें जौ डाली जाती है। फिर उस पर पानी छिड़कें। ताकि जौ के उगने के लिए सही नमी हो जाए। यह जौ पूरी नवरात्रि (Navratri) तक रखते हैं। यह जितना ही हरा भरा होगा, उतना ही आपके परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ेगी। ऐसी धार्मिक मान्यता है।
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