डेस्क। दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाने वाला Chhath महापर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है। माना जाता है कि सूर्य देव जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के दाता हैं, जबकि छठी मैया संतान की रक्षक देवी हैं। यही कारण है कि महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं।
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छठ पूजा का व्रत चार दिनों तक चलता है, जिसमें व्रती भोजन और जल का त्याग कर संयम का पालन करते हैं। इस व्रत में विशेष नियमों का पालन करना होता है और इसे कठिन माना जाता है। छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती स्नान करते हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं।

दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन शाम को प्रसाद में गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है और व्रती इसे खाकर व्रत का संकल्प लेते हैं। इसके बाद व्रत के दौरान सिर्फ अर्घ्य के समय जल ग्रहण किया जाता है। छठ पूजा के तीसरे और चौथे दिन व्रती नदी, तालाब या अन्य जल स्रोत पर जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह सूर्यास्त और सूर्योदय अर्घ्य क्रमशः अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का प्रतीक माना जाता है।
छठ पूजा को विज्ञान से भी जोड़ा गया है। सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य की ऊर्जा सीधे शरीर में प्रविष्ट होती है, जिससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है। यह प्रक्रिया शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक होती है। छठ पूजा में ठेकुआ, चावल के लड्डू और फलों का प्रसाद तैयार किया जाता है। ये प्रसाद घर-घर में बांटे जाते हैं और इसका सेवन शुभ माना जाता है।
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