नई दिल्ली। यूनियन कैबिनेट ने आने वाली 2027 की जनगणना (Census) के लिए 11,718 करोड़ रुपए के बजट को मंजूरी दे दी है। आपको बता दें कि यह भारत की पहली पूरी तरह से डिजिटल जनगणना होगी। इस बड़े पैमाने पर गिनती के काम के लिए देश बढ़ाते लगभग 30 लाख सरकारी कर्मचारियों को लगाया जाएगा। इसी बीच एक सवाल सामने आ रहा है कि क्या केंद्र सरकार ने कर्मचारियों को अलग से सैलरी देगी?
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दरअसल केंद्र सरकार 30 लाख जनगणना कर्मचारियों को अलग से सैलरी नहीं देती है। टीचर, रेवेन्यू स्टाफ, आंगनवाड़ी वर्कर, क्लार्क और दूसरे राज्य या केंद्र सरकार के अधिकारियों को आमतौर पर गिनती करने वाले या सुपरवाइजर के तौर पर नियुक्त किया जाता है। वे अपने-अपने डिपार्टमेंट से अपनी रेगुलर महीने की सैलरी लेते रहते हैं।

आपको बता दें कि जनगणना का काम उनकी ऑफिशल सर्विस ड्यूटी का ही हिस्सा माना जाता है। यही वजह है कि इस टेंपरेरी काम के लिए कोई पूरी एक्स्ट्रा सैलरी नहीं दी जाती। वैसे तो कोई अलग सैलरी नहीं होती लेकिन जनगणना कर्मचारियों को मानदेय दिया जाता है। यह मानदेय काम पूरा होने के बाद एक मुश्त दिया जाता है। यह रकम जिम्मेदारियों, काम के बोझ, डिजिटल डेटा हैंडलिंग और सुपरविजन ड्यूटी के आधार पर अलग-अलग होती है।
पिछली जनगणना साइकिल से यह पता चलता है कि मानदेय आमतौर पर ₹6000 से 10000 रुपए तक होता है। बता दें कि बूथ लेवल ऑफिसर भारत के चुनाव आयोग के तहत आते हैं, जनगणना मशीनरी के तहत नहीं। एक बूथ लेवल ऑफिसर को जनगणना के काम के लिए पेमेंट तभी मिलता है जब वह जनगणना एन्यूमेरेटर के तौर पर काम करता है, इसलिए नहीं कि वह बूथ लेवल ऑफिसर है।
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