डेस्क। हिंदू धर्म (Hinduism) में वट यानी बरगद के पेड़ (Banyan tree) को विशेष पूजनीय माना गया है। खासकर वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) के दिन इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसकी जड़ों को ब्रह्मा, तने को विष्णु और शाखाओं को शिव का रूप माना जाता है।
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वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को 12 बजकर 11 मिनट से होगी। वहीं इस तिथि का समापन 27 मई को सुबह 08 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में 26 मई को वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) किया जाएगा। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान कर पूर्ण श्रृंगार करती हैं और बिना कुछ खाए-पिए कठोर व्रत का पालन करती हैं। वे वट यानी बरगद के पेड़ के पास जाकर उसकी विधिपूर्वक पूजा करती हैं।
पूजा के दौरान बरगद के तने के चारों ओर कच्चा सूत (साफ धागा) सात बार लपेटा जाता है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और हर सुहागिन स्त्री पूरे विश्वास और श्रद्धा से इसका पालन करती है। वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) के दिन बरगद के पेड़ की पूजा न करने से व्रत अधूरा माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार वट सावित्री व्रत के शुभ अवसर पर बरगद के पेड़ की पूजा करने से सुहागिन महिलाओं को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही पति को लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इस दिन बरगद के पेड़ की परिक्रमा के दौरान कच्चा सूत बांधना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वट सावित्री व्रत (Vat Savitri) की पूजा के दौरान बरगद के पेड़ पर सात बार कच्चा सूत बांधने से पति-पत्नी का रिश्ते मजबूत होते हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन में आने वाले सभी संकट दूर होते हैं। इसके अलावा पति-पत्नी के रिश्ते सात जन्मों तक बने रहते हैं।
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