डेस्क। नवरात्रि (Navratri) के दिनों में गरबा (Garba) की धूम अलग ही रौनक जमाती है। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो नवरात्रि का इंतजार ही इसलिए करते हैं क्योंकि इस दौरान उन्हें गरबा खेलने, रंग-बिरंगे कपड़े पहनने की अवसर मिलेगा। भारत का पश्चिमी प्रांत, गुजरात (Gujarat) तो वैसे ही गरबे की धूम के लिए अपनी अलग पहचान रखता है लेकिन अब तो भारत समेत पूरे विश्व में नवरात्रि के पावन दिनों में गरबा खेला जाता है।
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गरबा नवरात्रि (Navratri) का एक प्रमुख सांस्कृतिक आयोजन है। ये सब तो बहुत कॉमन बातें हैं जो लगभग सभी लोग जानते हैं। गरबा (Garba) खेलना और गरबे की रौनक का आनंद उठाना तो ठीक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि गरबा खेलने की शुरुआत कहां से हुई और नवरात्रि के दिनों में ही इसे क्यों खेला जाता है?
गरबा (Garba) के शाब्दिक अर्थ पर गौर करें तो यह गर्भ-दीप से बना है। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है। लोगों का मानना है कि यह नृत्य मां अंबा को बहुत प्रिय है, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए गरबा (Garba) का आयोजन किया जाता है। भक्तिरस से परिपूर्ण गरबा भी मां अंबा की भक्ति का तालियों और सुरों से लयबद्ध एक माध्यम है।

नवरात्रों (Navratri) की पहली रात्रि को कच्चे मिट्टी के छेदयुक्त घड़े, जिसे ‘गरबो’ कहते हैं, इसकी स्थापना होती है। फिर उसके अंदर दीपक जलाया जाता है। यह दीप ज्ञान की रोशनी का प्रतीक माना जाता है। वर्षों पहले गुजरात में महिषासुर राक्षस के आतंक से त्रस्त लोगों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना की। देवताओं के प्रकोप से तब देवी जगदंबा प्रकट हुई और उन्होंने उस राक्षस का वध किया। तभी से यहां नवरात्रि में भक्त नौ दिन तक उपवास करने लगे और देवी के सम्मान में डांडिया करने लगे।
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