डेस्क। ईद उल-फितर (Eid) 31 मार्च यानी आज मनाई जा रही है। ईद (Eid) का अर्थ त्योहार या पर्व (festival) से है जबकि ईद उल-फितर का मतलब ‘उपवास तोड़ने’ से है। ये एक-दूसरे से मिलने, खुशियां बांटने और जरूरतमंदों को जकात यानी दान में कुछ देने का दिन है। इस्लाम के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक ईद उल-फितर रमजान (Ramadan) के पवित्र महीने के पूरे होने पर मनाई जाती है।
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इस्लामिक मान्यता के मुताबिक ईद उल-फितर (Eid) मनाने की शुरुआत पैगंबर मुहम्मद के समय के दौरान मानी जाता है। कहा जाता है कि पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना गए थे। वहां उन्होंने इसे स्थापित किया था। बताया यह भी जाता है कि पैगंबर ने मदीना में लोगों को दो दिन उत्सव मनाते हुए देखा। उन्होंने कहा कि अल्लाह ने मुसलमानों को इनके बदले इससे बेहतर दो दिन दिए हैं- ईद उल-फ़ितर और ईद उल अजहा। माना जाता है कि ईद उल-फितर (Eid) इसके बाद इस्लाम में मनाया जाने लगा। पहली ईद उल-फितर जंग-ए-बद्र की जीत के बाद मनाई गई थी।
जंग-ए-बंद्र को बद्र की लड़ाई के तौर पर भी जाना जाता है। इस्लामिक इतिहास के मुताबिक, कुरैश कबीले और मदीने के मुस्लिमों के बीच अरब प्रायद्वीप में बद्र नामक स्थान पर 624 ईस्वी में 17 मार्च को युद्ध हुआ था। यह रमजान (Ramadan) का महीना था। पैगंबर मुहम्मद के नेतृत्व में इस्लाम के अनुयायी 622 इसवी में मक्का से मदीना गए थे। मक्का में उन्हें परेशान किया जा रहा था लेकिन मदीना में भी उन्हें दिक्कतें झेलनी पड़ीं। उन्हें कुरैश कबीले के लोग परेशान कर रहे थे। इसके बाद 624 ईसवी में पैगंबर मुहम्मद की अगुआई में लगभग 300 लड़ाकों ने करीब 1000 सैनिकों वाली कुरैश सेना से जंग की।

पैगंबर मुहम्मद की सेना में 2 घोड़े और करीब 70 ऊंट थे, जबकि कुरैशों के पास करीब 100 घोड़े और कई ऊंट थे। लेकिन पैगंबर के सैनिकों ने कुओं पर कब्जा करके कुरैश की सेना को पानी के लिए तरसा दिया। रणनीतिक तरीके से लड़े गए इस युद्ध में कुरैश कबीले की हार हुई जबकि छोटी संख्या के बाद भी मुसलमानों ने जीत हासिल की। खास बात यह रही कि युद्ध में कुरैशों को अधिक जनहानि भी झेलनी पड़ी। इससे मुस्लिमों के आत्मबल को काफी बढ़ावा मिला और इस्लाम (Islam) की स्थिति मजबूत हुई। रमजान (Ramadan) के महीने में ये जीत मिली थी। मगर जीत का जश्न ईद उल-फितर के रूप में अगले महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया गया। इसके बाद से ईद मनाई जाने लगी।
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