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Friday, June 13, 2025

दिग्विजय सिंह को क्यों कहा जाता है ‘दिग्गी राजा’, CM बनने की कहानी है रोचक

मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) के भाई और एमपी के पूर्व विधायक लक्ष्मण सिंह (MLA Laxman Singh) कांग्रेस (Congress) से बाहर हो गए हैं। लक्ष्मण सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। बीते करीब पांच दशक से मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय दिग्विजय सिंह की शख्सियत ऐसी है कि उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

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मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) को अक्सर दिग्गी राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। दिग्विजय को यह नाम 1980 के दशक की शुरुआत में मिला जब वे लोकसभा के सांसद थे। 1984 में प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने पूरे देश से युवा कांग्रेसियों (Congress) को अपने कोर ग्रुप में चुना था। दिग्विजय भी इनमें से एक थे। दिल्ली में एक डिनर पार्टी हो रही थी जिसमें कांग्रेस के कई नेता और शीर्ष पत्रकार शामिल थे। इनमें आर के करंजिया भी थे जो एक अखबार के संपादक थे।

वृद्ध करंजिया दिग्विजय (Digvijay Singh) से बात कर रहे थे लेकिन उनके नाम का सही उच्चारण नहीं कर पा रहे थे। इसी पार्टी में करंजिया ने दिग्विजय को पहली बार दिग्गी राजा कहकर संबोधित किया था। यह नाम छोटा था और बोलने में आसान भी। इसके बाद से दिग्गी राजा नाम उनके साथ जुड़ गया। व्यक्तिगत संबोधन से लेकर अखबारों की हेडलाइन में उनके लिए दिग्गी राजा नाम धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है जबकि दिग्विजय खुद इसे पसंद नहीं करते।

जितनी रोचक दिग्विजय (Digvijay Singh) को दिग्गी राजा नाम मिलने की कहानी है, उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प उनके एमपी के मुख्यमंत्री चुने जाने की कहानी है। साल 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए और तमाम पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए कांग्रेस (Congress) ने बहुमत हासिल कर लिया। दिग्विजय सिंह उस समय प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे।

कांग्रेस (Congress) की सरकार बनने की संभावना देखते ही श्यामाचरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, सुभाष यादव और कमलनाथ जैसे नेता मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने लगे। शुक्ल के धुर विरोधी अर्जुन सिंह ने सुभाष यादव के लिए विधायकों का समर्थन जुटा रहे थे जबकि सिंधिया दिल्ली में बैठकर अपने लिए गोटियां फिट कर रहे थे। विधायक दल की बैठक में किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनती देख प्रणव मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराने का फैसला किया। गुप्त मतदान के समय हॉल में केवल दो गैर-विधायक मौजूद थे- दिग्विजय सिंह और उनके निजी सचिव राजेंद्र रघुवंशी। वोटिंग के दौरान कांग्रेस के 174 में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण शुक्ला को समर्थन दिया तो 100 से ज्यादा विधायकों ने दिग्विजय के पक्ष में मत दिया।

Tag: #nextindiatimes #DigvijaySingh #Congress #LaxmanSingh

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