डेस्क। हर साल बैसाखी (Baisakhi) का पर्व मेष संक्रांति के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से कृषि से जुड़ा है और नई फसल (crop) की कटाई की खुशी में मनाया जाता है। बैसाखी का पर्व सिख समुदाय के लिए बहुत ज्यादा महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
यह भी पढ़ें-यहां सिर के बल खड़े हैं हनुमान जी, त्रेतायुग से जुड़ी है कहानी
बैसाखी (Baisakhi) को आमतौर पर मेष संक्रांति भी कहा जाता है। यह दिन न सिर्फ किसानों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि सिखों के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक दिन भी माना जाता है। इस दिन लोग खुशी और समृद्धि की कामना करते हैं। साथ ही सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं। बैसाखी का पर्व भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर है।
सन् 1699 में बैसाखी (Baisakhi) वाले दिन ही गुरु जी ने विशाल पंडाल में संगत के बीच खड़े होकर पांच शीशों की मांग की। मंच पर सन्नाटा पसर गया पर बाद में एक-एक कर पांच सिखों ने अपना शीश अर्पित करने को आगे कदम बढ़ाया। वही पांच बने पंज प्यारे, खालसा पंथ के पहले दीये, जिन्होंने संसार को दिखाया कि गुरु का मार्ग केवल तलवार या तलवार की धार पर नहीं, बल्कि आत्म-बलिदान, पवित्रता और परम सत्य की नींव पर चलता है।

हर साल बैसाखी (Baisakhi) का पर्व मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं। इस मौके पर लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं और ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते-गाते हैं। यह पर्व सिख धर्म के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व सिख समुदाय के लिए एकता, साहस और धार्मिक निष्ठा का प्रतीक है।
Tag: #nextindiatimes #Baisakhi2025 #sikhfestival