डेस्क। अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है। यह पर्व (festival) वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह दिन मां लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। इस साल अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाई जा रही है। आज पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 40 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक है।
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पौराणिक तथ्यों के अनुसार चार युग होते हैं- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग, जिसमें सतयुग और त्रेतायुग (Tretayug) का शुभारंभ अक्षय तृतीया के दिन से हुआ है। श्रीहरि ने धर्म की भार्या मूर्ति के गर्भ से नर-नारायण के रूप में चौथा अवतार लिया, उस दिन भी वैशाख मास की तृतीया (Akshaya Tritiya) ही थी। इस अवतार में ऋषि के रूप में मन-इंद्रिय का संयम करते हुए, बड़ी ही कठिन तपस्या की।
श्रीमद्भागवतमहापुराण के अनुसार, अनंतकोटि ब्रह्मांड नायक परमेश्वर श्रीहरि ने अक्षय तृतीया को हयग्रीव अवतार लेकर वेदों की रक्षा की। आदिगुरु भगवान शंकारचार्य महाभाग अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन ही भगवान् के श्रीविग्रह को विशालाक्षेत्र में अलकनंदा नदी में स्थित कुंड से बाहर निकालकर श्रीबद्रीनाथजी के श्रीविग्रह में उनकी प्रतिष्ठा की, इसलिए अक्षय तृतीया तिथि को ही श्रीबद्रीनाथ धाम के मंदिर के कपाट जन-सामान्य के दर्शन-पूजनादि हेतु खोल दिए जाते हैं।

कौरव-पांडव के मध्य जो धर्म-अधर्म को लेकर महायुद्ध हुआ, जिसे महाभारत की संज्ञा दी गई, उसका विराम अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन ही हुआ तथा द्वापर युग का समापन भी इसी तिथि को ही हुआ माना गया है। पौराणिक मान्यतानुसार एक कथा प्रचलित है कि परशुराम जी की माता रेणुका जी और विश्वामित्र की माता सत्यवती जी ने पुत्र प्राप्ति की कामना से व्रतोपवास किया। व्रत के पूर्ण होने के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने जो प्रसाद दिया, वह संयोग से परिवर्तित हो गया, जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने पर भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए।
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