महाराष्ट्र। महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में 2005 में एक बड़ा बदलाव आया। यह वह साल था जब महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे मजबूत स्तंभ ठाकरे परिवार में फूट पड़ गई। राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने शिवसेना (Shiv Sena) छोड़ दी। शिवसेना को उनके चाचा बाल साहेब ठाकरे ने बनाया था। राज ठाकरे के इस्तीफे से पूरे राज्य में हलचल मच गई थी। 1988 में बालासाहेब के भतीजे राज ठाकरे ने राजनीति में प्रवेश किया था।
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राज ठाकरे (Raj Thackeray) का पार्टी से अलग होना कई महीनों से चल रही अंदरूनी कलह का नतीजा था। 2000 के दशक की शुरुआत में उत्तराधिकार की लड़ाई की बातें सामने आने लगी थीं। बाल ठाकरे ने उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया था। राज ठाकरे, जो उस समय एक लोकप्रिय युवा नेता थे, खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे। एक वक्त तक माना जाता था कि राज ठाकरे (Raj Thackeray) ही बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे।
लेकिन 23 जुलाई 1996 को दादर निवासी रमेश किनी की मौत के बाद राज ठाकरे विवादों में आ गए। रमेश किनी ने मौत का आरोप राज ठाकरे पर ही लगाया। इसके बाद शिवसेना में बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की एंट्री होती है। उद्धव की एंट्री के साथ ही पार्टी की कई जिम्मेदारियां राज ठाकरे से लेकर उद्धव को दे दी गईं। धीरे-धीरे पार्टी में राज का रोल कम हो गया और उद्धव के नेतृत्व में हुए एक चुनाव में पार्टी को अच्छी बढ़त भी मिली। इससे उद्धव के नेतृत्व पर ठप्पा भी लग गया।

बाद में राज ठाकरे (Raj Thackeray) केस से बरी भी हो गए। इसके बाद उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। नाम का प्रस्ताव राज ठाकरे से ही रखवाया गया, जिससे ऐसा लगे कि दोनों भाइयों में कोई मतभेद नहीं है। लेकिन ये अभिनय ज्यादा दिन तक चल न सका। राज ठाकरे ने अक्सर कहा है कि उद्धव के साथ उनकी लड़ाई कभी व्यक्तिगत नहीं थी, सिर्फ राजनीतिक थी।
अप्रैल 2025 में, बृहन्मुंबई नगर निगम के चुनावों से कुछ महीने पहले, उद्धव ठाकरे ने एक बड़ा राजनीतिक ऐलान किया।उन्होंने राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के साथ गठबंधन करने की इच्छा जताई। उद्धव ठाकरे ने कहा मैं साथ आने के लिए तैयार हूं। मैं महाराष्ट्र के हित में आगे बढ़ने के लिए तैयार हूं। इससे रिश्तों में नाटकीय बदलाव के संकेत मिले हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब MNS चुनावी रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है।
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