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Sunday, October 19, 2025

दीवाली पर क्यों होती है आतिशबाजी? त्रेतायुग नहीं इस काल में हुई थी शुरुआत

डेस्क। Diwali आते ही बाजार पटाखों और रंग बिरंगी लाइट से गुलजार हो जाते हैं। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि जब भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो उनका स्वागत दीप जलाकर किया गया था। क्या उस वक्त भी पटाखे फोड़े गए थे? आइए जानते हैं इस सवाल का जवाब।

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जब भगवान राम 14 साल के वनवास से लौटे थे, तो अयोध्या वासियों ने पटाखों से नहीं बल्कि तेल के दीयों की कतारें जलाकर उनका स्वागत किया था। रामायण के सदियों बाद पटाखों का प्रचलन शुरू हुआ और दिवाली के उत्सव को और भी बेहतर बनाने के लिए यह इस त्योहार के साथ जुड़ गया।

पटाखे अब जश्न का एक प्रतीक बन चुके हैं। ये अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक हैं। कई समुदायों में ऐसा मानना है कि पटाखों की तेज आवाज बुरी आत्माओं को दूर भागती है। पटाखों का इस्तेमाल उत्सव की भावना को बढ़ाने, उत्साह बढ़ाने और दिवाली के दौरान परिवारों को एक साथ लाने के लिए किया जाता है। पटाखों का आविष्कार सबसे पहले प्राचीन चीन में लगभग 800 ईस्वी में किया गया था।

शुरुआत में पटाखे बारूद से भरे बांस के डंठल होते थे जिन्हें जलने पर तेज विस्फोट होता था। भारत में मुगल काल के दौरान पटाखों का आगमन हुआ और शाही समारोहों में इनका इस्तेमाल किया जाने लगा। बड़े पैमाने पर पटाखों का उत्पादन 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ। पानीपत के युद्ध में काबुल के सुल्तान बाबर ने भारत में सबसे पहले बारूद का प्रयोग किया था। उस समय तक भारतीय बारूद या पटाखों से परिचित नहीं थे। बाद में पटाखे चीन के रास्ते ही देश में पहुंचे।

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