डेस्क। अमेरिका (America) और चीन (China) के बीच ट्रेड वॉर (trade war) तेज हो गई है। पूरी दुनिया की इकोनॉमी (economy) एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। हर देश एक-दूसरे के साथ व्यापार कर रहा है। हर देश किसी ना किसी उत्पाद या सेवा के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर है। ऐसे में यदि कोई एक देश किसी तरह का आर्थिक फैसला लेता है, तो उसका सीधा असर उससे जुड़े अन्य देशों पर भी पड़ता है।
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हाल ही में अमेरिका की टैरिफ नीति (America’s tariff) के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर इसका असर देखने को मिला। इस व्यापार युद्ध के कारण कई अमेरिकी कंपनियां चीन से अपने ऑपरेशंस शिफ्ट करने का मन बना चुकी हैं। इनमें अमेरिका की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी ऐपल भी शामिल है। जब दो या उससे ज्यादा देश एक-दूसरे पर टैरिफ (import taxes) लगाकर व्यापार से जुड़ी पाबंदियां लगाने लगते हैं, तो इससे ट्रेड वॉर की स्थिति पैदा हो जाती है। जब इसकी वजह से सभी देश एक-दूसरे के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते रहते हैं, तो इसे ट्रे़ड वॉर (trade war) कहा जाता है।

एंग्लो-डच के बीच साल 1653 के आस पास एंग्लो-डच के बीच व्यापार युद्ध (trade war) की शुरुआत हुई थी। इसकी शुरुआत तब से मानी जाती है, जब इंग्लैंड (England) के लोग डच व्यापारी शिपिंग्स पर हमला कर दिया करते थे। पहले वो छोटे हमले किया करते थे, लेकिन आगे चलकर इसने युद्ध का रूप ले लिया। समुद्र और व्यापार मार्गों पर नियंत्रण पाने के लिए दूसरा एंग्लो-डच युद्ध हुआ था। यूरोपीय कमर्शियल राइवलरी के दौरान विश्व के व्यापार से डच वर्चस्व को खत्म करने के लिए इंग्लैंड ने काफी कोशिशें की थी।
दुनिया में जब भी ट्रेड वॉर (trade war) की स्थिति बनी है, इसका सीधा असर आयात शुल्क पर पड़ता है। इससे चीजें महंगी होने लगती हैं। इसे उदाहरण से समझें, तो जिस तरह से अमेरिका में चीन से इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स आते हैं। अमेरिका ने इन पर टैरिफ लगा दिया। इसकी वजह से चीन से अमेरिका आने वाले इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स बहुत महंगे हो गए। किसी भी देश पर टैरिफ लगने से पूरी ग्लोबल चेन बिगड़ जाती है। कुल मिलाकर इसका सीधा खामियाजा आम आदमी की जेब से ही भरा जाता है।
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