नई दिल्ली। 3 दिसंबर का दिन भारतीय रुपये (Indian Rupee Fall) के लिए बड़ा अमंगलकारी साबित हुआ है। शुरुआती कारोबार में भारतीय मुद्रा रुपया US डॉलर के मुकाबले 90.14 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। रुपये की कमजोरी के चलते शेयर बाजार में गिरावट के साथ कारोबार हो रहा है। रुपये के गिरने से बहुत से नुकसान होते हैं जो आम आदमी के निवेश से लेकर अन्य कामों पर असर डालते हैं।
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भारतीय रुपये में कमज़ोरी या गिरावट विदेशों से आयात होने वाले सामानों की लागत को बढ़ाता है, इससे महंगाई बढ़ती है। इसके अलावा लोन और विदेशी शिक्षा महंगी हो जाती है। रुपये की गिरावट आम आदमी के निवेश और बचत को भी प्रभावित करती है। भारत पेट्रोल-डीजल समेत कई जरूरी वस्तुओं का आयात करता है।
चूंकि, विदेशों से होने वाले व्यापार का भुगतान डॉलर में किया जाता है इसलिए रुपये के कमजोर होने और डॉलर के मजबूत होने से वस्तुओं के लिए ज्यादा भुगतान करना पड़ता है। रुपये में गिरावट के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता वस्तुएँ काफ़ी महंगी हो जाती हैं क्योंकि ज़्यादातर उपकरण आयातित पुर्जों पर निर्भर करते हैं, जैसे सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले और प्रोसेसर, जिनकी कीमत डॉलर में होती है।

यह स्थिति कंपनियों को हर तरह की चीज़ों की कीमतें बढ़ाने पर मजबूर करती है, जिसका असर प्रीमियम गैजेट्स से लेकर एलईडी बल्ब और रसोई के उपकरणों जैसे बुनियादी उपकरणों तक, हर चीज़ पर पड़ता है। इसके अलावा, रुपये की गिरावट से फॉरेन में एजुकेशन महंगी हो जाती है। कमजोर रुपया आमतौर पर आरबीआई को ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर विचार करने और दरों में कटौती से बचने के लिए प्रेरित करता है, जिससे बैंक लोन सस्ते नहीं बल्कि महंगे हो जाते हैं।
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