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Friday, October 24, 2025

क्या होती है क्लाउड सीडिंग, जानिए इसमें कितना आता है खर्च?

नई दिल्ली। दिल्ली इन दिनों प्रदूषण की गिरफ्त में है और अब यहां एक अनोखे वैज्ञानिक प्रयोग की तैयारी की जा रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बताया कि बुराड़ी इलाके में Cloud Seeding का सफल ट्रायल किया गया है। मौसम विभाग के अनुसार, 28 से 30 अक्टूबर के बीच आसमान में पर्याप्त बादल बनने की संभावना है।

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अगर मौसम ने साथ दिया तो 29 अक्टूबर को दिल्ली पहली कृत्रिम बारिश का अनुभव कर सकती है। क्लाउड सीडिंग को आसान भाषा में कहें तो यह बादलों में बारिश के बीजों को बोने की प्रक्रिया है। बीज के रूप में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। कृत्रिम बारिश के लिए एयरक्राफ्ट की मदद से सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे पदार्थों को बादलों में पहुंचाया जाता है।

ये पदार्थ बादल में मौजूद पानी की बूंदों को जमा देती हैं। बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े आपस में जमकर बर्फ का बड़ा गोला बन जाता है और फिर यही धरती पर गिरता है। इस पूरी प्रक्रिया को ही कृत्रिम बारिश कहा जाता है। क्लाउड सीडिंग उन जगहों पर नहीं हो सकती है, जहां एक भी बादल नहीं हैं। यानी कृत्रिम बारिश के लिए बादलों का होना जरूरी है।

क्लाउड सीडिंग के लिए सबसे पहले यह पता लगाया जाता है कि बादल किस दिन रह सकता है। बादल में पानी की मात्रा का भी पता लगाया जाता है। उसके बाद केमिकल का छिड़काव किया जाता है और फिर कृत्रिम बारिश होती है। अगर सही से सीडिंग नहीं कराई गई, तो प्रयोग असफल भी हो सकता है। क्लाउड सीडिंग का आविष्कार अमेरिकी रसायन और मौसम वैज्ञानिक विंसेंट जे शेफर ने किया था।

Tag: #nextindiatimes #CloudSeeding #Delhi

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