डेस्क। सावन में महादेव के भक्त उनके दर्शन करने के लिए भारत के अलग-अलग मंदिरों में जाते हैं। हर मंदिर (Shiva temple) की अपनी कहानी और परंपरा है। किसी मंदिर में शराब चढ़ाई जाती है, तो कहीं घंटी बजाई जाती है।
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हिंदू धर्म में पूजा-पाठ की शुरुआत से पहले घंटी बजाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। माना जाता है कि घंटी की ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाती है और वातावरण को पवित्र करती है लेकिन कुछ ऐसे विशेष शिव मंदिर भी हैं जहां घंटी बजाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि पूजा का अनिवार्य हिस्सा है। बिना घंटी बजाए यहां पूजा अधूरी मानी जाती है।
कैलाशनाथ मंदिर, तमिलनाडु:
तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित कैलासनाथ मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है जो 8वीं शताब्दी में पल्लव वंश के दौरान बनाया गया था। भक्तों की मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां पूजा करता है और घंटी बजाता है, उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। मंदिर में घंटी बजाने की परंपरा शिव को जागृत करने की नहीं, बल्कि स्वयं की चेतना को जागृत करने की प्रक्रिया मानी जाती है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, महाराष्ट्र:
घृष्णेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में अंतिम स्थान रखता है और शिवभक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। यह मंदिर औरंगाबाद जिले के एलोरा गुफाओं के पास स्थित है और इसकी महिमा शास्त्रों में विशेष रूप से वर्णित है। यहां एक खास परंपरा है कि हर भक्त को मंदिर (Shiva temple) में प्रवेश करने से पहले मुख्य द्वार पर लगी घंटी अवश्य बजानी चाहिए। यह घंटी सिर्फ पूजा की शुरुआत का संकेत नहीं है, बल्कि यह शिव के प्रति अपनी उपस्थिति और समर्पण की घोषणा कहलाती है।
घंटेश्वर महादेव मंदिर, हरियाणा:
इस मंदिर (Shiva temple) की खास पहचान यहां लगी सैकड़ों छोटी-बड़ी घंटियों की श्रृंखला है, जो दूर से ही भक्तों का ध्यान खींचती है। यहां आने वाला हर भक्त दर्शन से पहले घंटी जरूर बजाता है। भक्तों की मान्यता है कि अगर कोई सच्चे मन से भगवान शिव का नाम लेकर घंटी बजाए, तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
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