आगरा। उत्तर प्रदेश आगरा (Agra) में हुए पनवारी कांड (Panwari incident) के घाव 35 साल बाद शुक्रवार को एक बार फिर से ताजा हो गए। जब कोर्ट (court) में इस मामले की सुनवाई हुई तो गवाही देते हुए पीड़ित के आंखों से आंसू झलक उठे। उसने कोर्ट को बताया कि उसके पिता को दंगाईयों ने इतना पीटा कि मरणासन्न हो गए। एक साल तक उनकी पीठ से चोट के नीले निशान नहीं मिटे थे।
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हॉस्पिटल (hospital) में भर्ती बुजुर्ग पिता को 21 दिन बाद होश आया। आज उनकी उम्र 88 साल है। वे सेना से रिटायर होकर अकोला अपने गांव आए थे। 24 जून 1990 की दोपहर को जाटों ने उनके गांव पर हमला बोल दिया था। निहत्थों पर हथियारों, लाठी-डंडों और फरसों से वार किया था। इस घटना में 70 से 80 लोग घायल हुए थे। जिसमें औरतें, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे।
ये जातीय खूनी संघर्ष 35 साल पुराना है। 21 जून 1990 को दलित भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात आनी थी। बारात चढ़ने का जाटों ने विरोध किया था। इस पर जातीय संघर्ष शुरू हो गया। तत्कालीन डीएम अमल कुमार वर्मा, एसएसपी कर्मवीर सिंह और श्रम एंव कल्याण मंत्री रामजीलाल सुमन ने दोनों समाज के लोगों के साथ पंचायतें कीं, लेकिन वे नाकाम साबित हुए। जाट समुदाय के लोगों ने पुलिस के सामने ही उपद्रव मचा दिया। Panwari incident में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी।

इस जातीय संघर्ष (Panwari incident) ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि जिले के आसपास के इलाकों तक दंगा भडक़ उठा। भरतपुर से जाटों की भीड़ आगरा पहुंच गई। जाटवों के गांवों पर हमले किए गए। कई लोगों की जानें भी चली गईं। 10 दिनों तक जिले में कर्फ्यू लगा रहा। इसके बावजूद भी उपद्रवियों के हमले कम नहीं हुए। ग्रामीण अंचलों में हिंसा भडक़ती रही। सेना को बुलाया गया। सेना ने मोर्चा संभाला इसके बाद दंगा पर नियंत्रण किया जा सका।
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