लखनऊ। चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) शुरू हो चुकी है और इनमें देवी (goddess) के नौ रूपों की पूजा होती है। यूं तो देश भर में देवी मां के कई शक्तिपीठ और सिद्धपीठ हैं। ठीक इसी तरह लखनऊ (Lucknow) में भी देवी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनमें सबसे खास पांच देवियां हैं- बड़ी काली, मनसा, संदोहन, मसानी और शीतला माता। इनके अलावा भुइयन देवी और संकटा देवी मंदिर भी आस्था के बड़े केंद्र हैं। इन मंदिरों (temple) का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है।
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मनसा देवी मंदिर:
नागकुल की अधिष्ठात्री होने के कारण मनसा देवी रहस्यमयी व्यक्तित्व की स्वामिनी रही हैं। सराय माली खां में माहूलाल की चढ़ाई के पास मनसा देवी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर (temple) के पास ऐतिहासिक जियालाल फाटक है, जो लखौरी ईंटों की दक्ष चुनाई के लिए दर्शनीय है।
बड़ी काली मंदिर:
यह मंदिर (temple) चौक में दहला कुआं और बानवाली गली के बीच स्थित है। मंदिर का आसन बहुत ऊंचा है। कहते हैं कि कभी आदि गंगा गोमती इसके पास से बहती थी। मुख्य मंदिर के चारों तरफ कई छोटे-छोटे बड़े मंदिर हैं। इसमें एक का शिखर गया शैली में बना है। इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। मंदिर में रजत वेदी पर लक्ष्मी और नारायण की हजार वर्ष से भी पुरानी चतुर्भुज युगल प्रतिमा है।
संदोहन देवी मंदिर:
‘सिंधुवन’ लखनऊ का प्राचीन स्थल था। इस वन में एक तालाब था, जिसके अवषेश संदोहन देवी मंदिर के पास मिले थे। सरोवर के साथ मौर्यकालीन मूर्तियां भी मिली थीं। इनमें कुछ अब भी मंदिर परिसर में हैं। संदोहन देवी मंदिर प्राचीन मंदिरों के भग्नावषेशों पर ऊंचे आसन पर स्थापति नवनिर्मित भगवती मंदिर है।

भुइयन देवी:
19वीं सदी की शुरुआत में बादशाह नसीरूद्दीन हैदर के शासन काल में पुराना गणेशगंज बस रहा था, तब इस जंगल के बीच एक मरघटा था। यहां खोदाई के वक्त पीपल के नीचे देवी की एक प्राचीन मूर्ति मिली। इसे छोटी-सी मठिया में स्थापित कर दिया गया। फिर इस भूमिया विग्रह को भुइयन देवी के नाम से पूजा जाने लगा।
मसानी देवी:
शिव श्मशान के देवता हैं तो शिवनी भी श्मशानी हैं। उन्हीं को मसानी देवी भी कहते है। सआदगंज में मसानी माता का प्राचीन मंदिर है। आज भी यहां फूलों के साथ कौड़ियां चढ़ती हैं। मध्यकाल में भगवती की यह गुप्तकालीन प्रतिमा कदम के नीचे कुएं से मिली थी। साल 1883 में पुजारी मंसादीन माली ने इस मंदिर (temple) की नई रूपरेखा तैयार की।
शीतला मंदिर:
मेहंदीगंज में शीतला देवी का प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि लवकुश ने इस मंदिर की स्थापना की थी। तब यह गोमती इस मंदिर के पास से बहती थी। जल धारा का प्राचीन मार्ग यही था, जिसका प्रमाण दरियापुर मोहल्ला है यहां की प्रमुख प्रतिमा मध्य-काल के आक्रांताओं द्वारा भग्न है। यहां उसी की पिंडी की पूजा होती रही है। मंदिर के परिक्रमा पथ में दसवीं सदी की उमा महेश्वर की भग्न प्रतिमा है।
संकटा देवी:
रानी कटरा के बड़ा शिवाला प्रांगण में बंदी माता की अत्यंत प्राचीन मूर्ति है। वंदनीय माता कही जाने वाली इस प्रतिभा के लोग प्रयत्न लाघव में वंदी माता कहने लगे। यहां संकटा देवी हैं और कश्मीरी ब्राह्मणों की ईष्ट देवी आद्या देवी की मूर्तियां भी। अवध में संकटा देवी हर क्षेत्र में मिलती हैं।
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