डेस्क। राधा अष्टमी (Radha Ashtami) भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। राधा जी (Radha) को भगवान श्रीकृष्ण की संगिनी और भक्ति की देवी माना जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा (Mathura) के बरसाना में जन-जन की आराध्य अजन्मी लाडली राधा रानी जी का जन्मोत्सव (Radha Ashtami) धूमधाम से मनाया जाता है।
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भगवान श्री कृष्ण (Krishna) के जन्म के 15 दिन बाद, शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधा रानी का जन्मोत्सव (Radha Ashtami) मनाया जाता है। राधा (Radha) रानी के जन्मोत्सव (Radha Ashtami) पर ब्रज के विभिन्न स्थानों पर आयोजन होते हैं लेकिन सबसे अधिक धूम बरसाना, रावल और वृंदावन में होती है। बरसाना में राधा (Radha) रानी का दरबार है, जहां मुख्य आयोजन किया जाता है। रावल में राधा रानी प्रकट हुई थीं और वृंदावन में उन्होंने रास रचाया था। इसी कारण तीनों स्थानों पर विशेष आराधना होती है।

कृष्ण (Krishna) के ह्रदय में वास करने वाली राधारानी (Radha) बरसाना में पली-बढ़ी थीं लेकिन उनका जन्म यहां से 50 किमी दूर रावल गांव में हुआ था। मान्यता है कि यहां स्थापित मंदिर के ठीक सामने एक बगीचा है, जहां आज भी राधा-कृष्ण (Radha-Krishna) पेड़ के रूप में मौजूद हैं। रावल गांव में स्थापित राधारानी के मंदिर के ठीक सामने प्राचीन बगीचा है। कहा जाता है कि यहां पर पेड़ स्वरूप में आज भी राधा और कृष्ण (Radha-Krishna) मौजूद हैं। यहां पर एक साथ दो पेड़ हैं। एक श्वेत है तो दूसरा श्याम रंग का। इसकी रोज पूजा होती है।

शास्त्रों के अनुसार राधाजी (Radha) के नेत्र जन्म से लेकर करीब 11 महीने तक बंद रहे। वहीं, दूसरी तरफ मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण (Krishna) का जन्म हुआ। रातों रात उन्हें गोकुल में नंदबाबा के घर पहुंचाया गया। कंस के डर से उस वक्त कृष्ण का जन्मोत्सव नहीं मनाया गया। 11 महीने बाद नंदबाबा ने सभी जगह संदेश भेजा और कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। गोकुल के राजा वृषभान जी भी बधाई लेकर गोकुल पहुंचे। उनकी गोद में राधारानी (Radha) भी थीं। वहां बैठते ही राधारानी घुटने के बल चलते हुए बालकृष्ण के पास पहुंची और तभी उन्होंने अपने नेत्र खोल दिए।
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