चित्रकूट। अयोध्या नरेश चक्रवर्ती महाराज दशरथ ने अपनी पत्नी कैकेयी के कहने पर बड़े पुत्र भगवान राम (Shri Ram) को 14 साल का वनवास और भरत को अयोध्या (Ayodhya) का राज दे दिया था। पिता के आदेश पर भगवान भी श्रृंगवेरपुर होते हुए चित्रकूट (Chitrakoot) के जंगल में आ गए। इधर, उनके छोटे भाई भरत ननिहाल से वापस आए और उन्हें पूरी कहानी पता चली तो वह भगवान को मनाने के लिए चित्रकूट आए थे। इस श्रीराम-भारत मिलाप की कहानी यहां के पिघले हुए पत्थर बखूबी बताते हैं।
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मध्य प्रदेश के चित्रकूट में भगवान कामतानाथ परिक्रमा मार्ग पर भरत मिलाप मंदिर स्थित है। यहां भगवान राम (Shri Ram) के प्रति उनके प्रेम और अयोध्या के राज के प्रति त्याग को देखकर अयोध्या के लोग खुद को रोने से रोक नहीं पाए। गोस्वामी तुलसीदास जी तो श्रीराम चरित मानस तो यहां तक कहते हैं कि जीव जंतु और पेड़ पौधे भी रोने लगे थे। यहां तक कि राम और भरत के प्रेम में वहां के पत्थर और पहाड़ पिघलने लगे।

इन पिघले हुए पत्थर आज भी चित्रकूट में सुरक्षित हैं और इन्हें देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस मंदिर में आज भी राम जी (Shri Ram) और भरत जी के पैरों के निशान एक शिला पर देखे जा सकते हैं। राम-भरत मिलाप मंदिर (Ram-Bharat Milap temple) के साथ-साथ कौशल्या-सीता मिलन और लक्ष्मण-शत्रुघन मिलन मंदिर भी स्थापित है। अंत में जब भरत राम जी को वापिस अयोध्या चलने के लिए मनाने में असफल रहे, तो वह उनकी चरण पादुका को ही अपने साथ ले गए और उन्हीं पादुका को सिंहासन पर विराजमान कर अयोध्या का राज चलाया।

चित्रकूट में आज भी वह पिघले हुए पत्थर मौजूद हैं और भगवान राम (Shri Ram) और भरत जी के आपसी प्रेम की गवाही दे रहे हैं। भरत मिलाप मंदिर से कुछ दूरी पर एक विशाल कुआं भी मौजूद है, जिसे भरत कूप के नाम से जाना जाता है। चित्रकूट की तीर्थयात्रा इस पवित्र पूजा स्थल की यात्रा के बिना अधूरी मानी जाती है। सा कहा जाता है कि भरत जी, भगवान राम का एक राजा के रूप में अभिषेक करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सभी पवित्र तीर्थों के जल को एकत्रित किया। बाद में ऋषि अत्रि की सलाह मानकर उन्होंने जल को इस कुंए में डाल दिया था। इसलिए इसे भरत कूप के नाम से जाना जाता है।
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