एंटरटेनमेंट डेस्क। तेलुगू फिल्मों से बाल कलाकार के तौर पर अपने करियर का आरंभ करने वाली Rekha के पिता जेमिनी गणेशन और मां पुष्पावल्ली भी बेहतरीन कलाकार थे। रेखा जब हिंदी फिल्मों में आई थीं तो उनकी काया व सांवले रंग को लेकर नकारात्मक टिप्पणियां की गई थीं। उनके ड्रेसिंग सेंस और मेकअप का भी मजाक उड़ाया जाता था।
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यही नहीं उनकी एक्टिंग पर भी प्रश्न चिन्ह लगाए जाते थे। यहां तक कहा गया कि वो एक ऐसी हीरोइन हैं जिनको फिल्मों में गुड़िया की तरह रखा जाता है, जिससे अभिनय की अपेक्षा नहीं की जाती है। ये बातें प्रोड्यूसर्स, निर्देशक और उस समय के फिल्म पत्रकारों ने इतनी बार कहीं कि रेखा का स्वयं पर से विश्वास डिग गया। वो बार-बार ये सोचतीं कि हिंदी फिल्मों की दुनिया में उनका गुजारा नहीं, क्योंकि उनकी तुलना उस दौर की सुंदर अभिनेत्रियों से की जाती थी। अधिकतर हेमा मालिनी से।

ऐसे माहौल में रेखा ने स्वयं को बदलने का तय किया। वो योग की शरण में गईं और उन्होंने वजन काफी कम कर लिया। अपनी साज-सज्जा पर ध्यान दिया। ये 1977 के आसपास की बात थी। अब वो फिल्मों के चयन में भी सावधान हो गईं। वैसी ही फिल्मों का चयन करने लगीं जिनमें उनको अभिनय प्रतिभा दिखाने का अवसर मिले।
1978 में उनकी फिल्म आई घर। इसमें रेखा ने रेप विक्टिम का रोल किया था। इसमें जिस प्रकार से पीड़िता का अभिनय किया उसने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। फिर आई मुकद्दर का सिकंदर। इसके बाद तो रेखा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर आई मि. नटवरलाल और सुहाग। अमिताभ बच्चन के साथ रेखा की जोड़ी सफलता की गारंटी बन गई।
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