डेस्क। केवड़ा (Kevada), जिसे पांडनस के नाम से भी जाना जाता है। यह एक उष्णकटिबंधीय पौधे का एक प्रकार है, जो दक्षिण पूर्व एशिया, उष्णकटिबंधीय एशिया और ऑस्ट्रेलिया (Australia) के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है। केवड़ा के फूलों से एक मजबूत, मीठी सुगंध निकलती है, जो इसे दक्षिण एशिया में पाककला और इत्र (perfumes) में लोकप्रिय बनाती है।
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केवड़ा (Kevada) की खेती में ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ता। इसके खेतों में खर-पतवार नहीं होते, इसलिए किसानों को निराई कराने की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बारिश अच्छी हो रही हो तो सिंचाई की जरूरत भी नहीं पड़ती है। अच्छी वर्षा वाले क्षेत्र में ही इसकी खेती ज्यादातर होती है। वैसे भी केवड़ा जल स्रोत के आस-पास अपने आप उग जाता है।
केवड़ा (Kevada) की खेती के लिए बलुअर दोमट मिट्टी और दोमट मिट्टी को काफी उपयुक्त माना जाता है। रेतीली, बंजर और दलदली मिट्टी में भी इसकी फसल अच्छी होती है। अगर जल निकासी की सुविधा अच्छी हो तो इसकी पैदावार अच्छी होती है। इन मिट्टियों के अलावा, आम तौर पर ज्यादातर मिट्टियों में इसकी फसल हो जाती है। केवड़ा की रोपाई जुलाई और अगस्त के महीने में की जाती है। सिंचाई के लिए साधन हो तो आप फरवरी-मार्च में भी इसकी खेती कर सकते हैं।

इसकी रोपाई से पहले खेत की अच्छे से जुताई करा कर पट्टा चला दें। इसके बाद पौधे को नर्सरी से लाकर खेत में बनाए गए गड्ढे में लगा दें। पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखना जरूरी होता है। केवड़ा की रोपाई शाम में की जाए तो अच्छा रहता है। शाम को तापमान कम रहता है। रोपाई के बाद नियमित पानी की जरूरत होती है। अगर बारिश हो रही है तो फिर सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। बारिश नहीं होने की स्थिति में हर 8-10 दिन पर खेत में पानी चलाना जरूरी है।
केवड़ा (Kevada) से सौंदर्य प्रसाधन बनाए जाते हैं। इससे सुगंधित साबुन, केश तेल, लोशन, खाद्य पदार्थ और सीरप आदी में उपयोग होता है। सुंगध के लिए पेय पदार्थों में भी इसे डाला जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर केवड़ा गठिया के रोग में बड़ा असरदार होता है। इसकी पत्तियों से भी कई प्रकार की दवाई बनाई जाती है। व्यावसायिक इस्तेमाल कर भी लोग इससे धन कमाते हैं। केवड़ा के रेशों से चटाई और टोकरी भी बनती है।
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