हिमाचल। देश भर में नवरात्रि (Navratri) की धूम है। इस नवरात्रि आप मां दुर्गा के उस रहस्यमय मंदिर के दर्शन कर सकते हैं, जहां मां सती की जीभ गिरी थी और वहां आज भी लगातार ज्वाला जलती रहती है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में है और इसका नाम ज्वाला देवी मंदिर (Jwala Devi Temple) है। मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
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यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों (temple) की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। इस मंदिर का सबसे पहले निर्माण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण कराया। यह ज्वाला धरती से निकलती है और इनकी संख्या 9 है। कहा जाता है कि इसका रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है आखिर ये ज्वालाएं धरती से निकल कैसे रही हैं। इनमें से कोई भी ज्वाला आज तक बुझी नहीं है।
9 रंगों की ये ज्वालाएं अद्भुत हैं और इन्हें देवी के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और ज्वाला माता (Jwala Devi Temple) के भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी है। ऐसा बताया जाता है कि एक बार ध्यानु एक हजार यात्रियों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर के पूछने पर ध्यानु ने ज्वाला माता के बारे में बताया।

इसके बाद अकबर (Akbar) ने ध्यानु की भक्ति और ज्वाला माता (Jwala Devi Temple) की शक्ति देखने के लिए एक घोड़े की गर्दन काट दी और देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करने कहा। इसके बाद ध्यानु अपने साथियों के साथ माता के दरबार पहुंचा और घोड़े को फिर से ज़िंदा करने की प्रार्थना की। माता ने ध्यानु की सुन ली और घोड़े को जिंदा कर दिया। यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। वहां पहुंचकर कर फिर उसके मन में शंका हुई। उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे मां की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर चढ़ाया।
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