डेस्क। Sharad Purnima का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं। इस बार पूर्णिमा तिथि दो दिन रहने वाली है। दरअसल, तिथि के घटने और बढ़ने के कारण ऐसा हुआ है। हालांकि, पूर्णिमा का व्रत और चन्द्रमा की किरणों में खीर 6 अक्तूबर सोमवार और स्नान दान 7 अक्तूबर मंगलवार को किया जाएगा।
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कहा जाता है कि, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण गोपियों संग महारास कर रहे थे। इस रासलीला में श्रीकृष्ण अकेले पुरुष थे और 16 हजार 108 गोपियां थीं। यह भी कहा जाता है कि, श्रीकृष्ण की यह महारास लीला शरद पूर्णिमा की रात्रि हुई थी। यह महारास एक रात्रि की थी, लेकिन छह मास तक चली थी। कृष्ण ने अपनी योगमाया से छह महीनों तक रात्रि ही रहने दी। यानी शरद पूर्णिमा से लेकर अगले 6 महीनों तक सूर्योदय ही नहीं हुआ था।

लोक मान्यताओं के अनुसार आज भी भगवान कृष्ण रात्रि के समय निधिवन में गोपियों के संग रास रचाते हैं। इसलिए दिन ढलने के बाद निधिवन में किसी को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। शिव भी इस महारास में शामिल होकर आनंद लेना चाहते थे। शिव योगमाया शक्ति से गोपी के रूप में परिवर्तित हो गए और महारास में शामिल हो गए।
गोपी का रूप धारण कर शिव भी कृष्ण संग ताल से ताल मिलाकर महारास करने लगे लेकिन कृष्ण ने उन्हें पहचान लिया और कहा- आओ गोपेश्वर! इतना ही श्रीकृष्ण ने अपने आराध्य देव को प्रणाम कर उनके इसी रूप में ब्रज में रहने का आग्रह भी किया। मथुरा में गोपेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव को महिला के रूप में श्रृंगार कर गोपेश्वर रूप में पूजा की जाती है।
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