(श्वेता सिंह)
“कई फूल चाहिए एक माला को बनाने के लिए,
कई दीपक चाहिए एक आरती सजाने के लिए,
कई बूंदे चाहिए समुद्र बनाने के लिए;
लेकिन “औरत” अकेली ही काफी है,
इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए।”
औरत (women) शब्द का उच्चारण होते ही एक ऐसी स्त्री की तस्वीर आँखों के सामने आ जाती है जो ममता से परिपूर्ण होती है और बिना किसी स्वार्थ के सभी कार्यों को अंजाम देती है। भारतीय संस्कृति में संस्कृत में एक श्लोक है- यन्त्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता अर्थात् जहां नारी (women) की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे भोग की वस्तु समझकर आदमी अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहा है।
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अखबार (newspaper) के पन्नों में रोजाना ही दुष्कर्म से सम्बंधित एक खबर तो अवश्य ही होती है। यह एक विडंबना ही है कि आखिर महिलाओं की यह स्थिति हुयी कैसे ? पुरुषवादी मानसिकता तो ऐसी अंधी हो चुकी है कि वह महिलाओं (women) के प्रति अपने रिश्ते को भी तार तार करने में परहेज नहीं करते। इसका एक ताज़ा उदाहरण उस समय सामने आया, जब अभी हाल ही में दिल्ली से एक खबर आई कि मात्र आठ माह की मासूम बच्ची के साथ उसके चाचा ने ही रेप कर डाला। आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं (women) के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो।
मेरे विचार से हर एक लड़की का अपनी जिंदगी में फब्ती (molestation) कसने वालों या घूरने वालों से एक न एक बार सामना अवश्य ही होता है। अपनी नौकरी या पढ़ाई के सिलसिले में रोजाना घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं (women) को तो शायद रोजाना ही इन समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए सबसे जरूरी ये है कि महिलाएँ (women) अपनी साथ होने वाली अभद्रता के खिलाफ स्वयं ही आवाज उठाना सीखें। इन दुखद समाचारों से बचने का एक ही तरीका है कि महिलाएं स्वयं को इतना सक्षम व सुदृढ़ कर लें कि उनको घूरने से भी पहले पुरुष एक बार अवश्य सोंचे।
मैं खुद ही लड़की हूँ और ऐसा नहीं है कि मैंने मोलेस्टेशन (molestation) नहीं झेला। इससे सम्बंधित एक सबसे यादगार वाक़या बताना चाहूंगी। मैं रोज की तरह ऑफिस जाने के लिए अपनी बस का इंतजार कर रही थी। तभी मेरी नज़र एक व्यक्ति पर पड़ी जो लगातार मुझे घूरे जा रहा था। पहले तो मैंने इसे इग्नोर किया और तब तक मेरी बस भी आ गयी। मैं बस में बैठ गई और मेरी नजर बस के बाहर गयी तो देखा कि वही व्यक्ति मेरी बस के बराबर से चल रहा था और मुझे एक विजिटिंग कार्ड (visiting card) पर लिखा नम्बर दिखा रहा था। उस समय तो मैंने उसका वीडियो बना लिया। अगले दिन सुबह मेरा फिर से उसी व्यक्ति से सामना हुआ। मैं दौड़कर खुद ही उसके पास गयी और वो कार्ड माँगा जो वह मुझे दिखा रहा था।
उसने अपना कार्ड दिया, जिसके पीछे उसका फ़ोन नम्बर लिखा था। फिर मैंने उसकी जानकारी जुटाई तो पता चला की उसकी अमीनाबाद में एक दूकान है। उसने अपना नाम सोनू बताया। फिर उसने मेरे जॉब के बारे में पूछा और मैंने जल्दबाजी में उसको बताया की मैं मीडिया में हूँ। इसके बाद तो उस व्यक्ति का चेहरा देखने लायक था। उसने तुरंत मेरे हाथ से अपना कार्ड झपटा और नौ दो ग्यारह हो गया। मुझे खुशी हुई कि मैं अपने प्रोफेशन की वजह से इस तरह की घिनौनी घटना से बच गयी। मैं रोजाना अपने घर से बाहर निकलने वाली लड़कियों (women) को सुझाव देना चाहती हूँ कि अपनी चुप्पी तोड़ो। ऐसे लोगों का पर्दाफाश करो जो तुम्हे घूरते हैं और अक्सर तुम्हारा पीछा करते हैं।”
मोलेस्टेशन (molestation) की घटना भी एक बेहद चिंताजनक बात है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं (women) को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अतः उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी (women) का सम्मान कैसे किया जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
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