डेस्क। दक्षिण एशिया की राजनीति में इस समय बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। पाकिस्तान और सऊदी अरब (Saudi Arabia) के बीच हाल ही में हुए रक्षा करार ने पूरे क्षेत्र की रणनीतिक तस्वीर को नया मोड़ दे दिया है। समझौते की शर्तों के मुताबिक, यदि इनमें से किसी एक देश पर हमला होता है तो उसे दूसरे देश पर हमला माना जाएगा।
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सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है और ऊर्जा संसाधनों की वजह से उसके पास अपार आर्थिक शक्ति है। 2025 के ताजा आंकड़ों के मुताबिक सऊदी अरब का रक्षा बजट करीब 75 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है, जो इसे दुनिया के टॉप 5 सबसे ज्यादा रक्षा खर्च करने वाले देशों में शामिल करता है।
उसके पास आधुनिक अमेरिकी हथियार, पैट्रियट और थाड मिसाइल डिफेंस सिस्टम, F-15 फाइटर जेट्स और यूरोफाइटर टाइफून जैसे अत्याधुनिक साधन मौजूद हैं। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि सऊदी अरब के पास तकनीकी हथियार तो हैं लेकिन उनका संचालन और रणनीतिक उपयोग मुख्यतः विदेशी विशेषज्ञों (खासकर अमेरिका और पश्चिमी देशों) पर निर्भर करता है। सऊदी अरब और पाकिस्तान का गठजोड़ क्षेत्रीय राजनीति में भारत के लिए चुनौती बन सकता है। सीधी सैन्य टक्कर की स्थिति में भारत की वैश्विक सहयोग और आत्मनिर्भर रक्षा प्रणाली उसे कहीं अधिक मजबूत बनाती है।

भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और तीसरी सबसे बड़ी सेना रखता है। भारत का सालाना रक्षा बजट 110 बिलियन डॉलर से ज्यादा है। भारत के पास परमाणु हथियारों के अलावा आधुनिक मिसाइल प्रणाली (अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस), बड़ी नौसेना और स्वदेशी तकनीक पर आधारित रक्षा उत्पादन क्षमता है। साथ ही भारत के पास युद्ध का लंबा अनुभव है– 1947, 1965, 1971 और 1999 के संघर्ष इसका उदाहरण हैं।
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