डेस्क। देश के अलग-अलग हिस्सों में इन दिनों भारी बारिश के चलते बाढ़ का कहर देखने को मिल रहा है। मानसून के दौरान लगातार भारी बारिश के चलते कई जगहों पर नदियों (river) का जलस्तर बढ़ा हुआ है। कई नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं लेकिन ये खतरे का निशान क्या होता है, कैसे तय होता है और इसे कौन तय करता है? चलिए जानते हैं।
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दरअसल जब नदी (river) का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर जाता है तब नदी का पानी बस्तियों, खेतों और सड़कों तक आ जाता है जो जन-जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है। यह एक तरह का अलार्म है, जो बाढ़ की संभावना को दर्शाता है। इसिलिए नदी में खतरे के निशान का मार्क लगाया जाता है जिससे नदी के वॉटर लेवल और फ्लो पर नजर रखी जा सके। ये मार्क नदी के अंदर एक पिलर पर रेड कलर का होता है।

भारत में नदियों के खतरे के निशान को केंद्रीय जल आयोग और संबंधित राज्य सरकारों के जल संसाधन विभाग मिलकर तय करते हैं। यह प्रक्रिया वैज्ञानिक अध्ययन, ऐतिहासिक आंकड़ों और स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों पर आधारित होती है। केंद्रीय जल आयोग के पास देशभर की प्रमुख नदियों (river) के जलस्तर की निगरानी के लिए सैकड़ों मॉनिटरिंग स्टेशन होते हैं। ये स्टेशन नदी के प्रवाह, गहराई का डेटा इकट्ठा करते हैं।
खतरे का निशान दो स्तरों पर तय किया जाता है एक वार्निंग लेवल और दूसरा खतरे का लेवल। वॉर्निंग लेवल वह होता है जहां प्रशासन को सतर्क होने की जरूरत होती है वहीं खतरे का स्तर वह स्थिति है जहां बाढ़ का खतरा स्पष्ट हो जाता है और तुरंत कार्रवाई की जरूरत होती है।
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