डेस्क। भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna), विष्णुजी के आठवें अवतार माने गए हैं। इनका अवतार द्वापर युग में प्रजा को कंस के अत्याचरों से मुक्ति दिलाने के लिए यदुवंश में हुआ था। गांधारी (Gandhari) के श्राप के चलते कान्हा की नगरी द्वारका (Dwarka) तो समुद्र में समाहित हो गयी लेकिन उसके बाद क्या हुआ चलिए बताते हैं आपको।
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महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब महाभारत का भीषण युद्ध समाप्त हुआ, तो इस युद्ध में गांधारी (Gandhari) और धृतराष्ट्र सभी 100 पुत्र मारे गए। इसके लिए गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को दोषी माना क्योंकि वह जानती थी कि अगर श्रीकृष्ण चाहते, तो इस युद्ध को होने से रोक सकते थे। तब गांधारी (Gandhari) ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है, उसी प्रकार यदुवंश (Dwarka) का भी नाश हो जाएगा।

इस श्राप के परिणाम स्वरूप यादुवंश के सभी लोग आपस में लड़कर मर गए। लेकिन एक ऐसा यदुवंशी था, जो जीवित रहा वह था वज्रनाभ। यह भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र थे। वज्रनाभ द्वारका (Dwarka) के अंतिम शासक थे। द्वारिका के समुद्र में डूब जाने के बाद अर्जुन की सहायता से वज्रनाभ अन्य लोगों के साथ हस्तिनापुर आ गए।
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं इन्हें मथुरा का राजा बनाने की घोषणा की थी। वज्रनाभ ने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से ब्रजमंडल की पुन: स्थापना की थी और कई मंदिरों आदि का निर्माण करवाया। इसलिए वज्रनाभ को ब्रज का पुनः निर्माता भी कहा जाता है। इसका वर्णन विष्णु पुराण के 37वें अध्याय में भी मिलता है। जब वज्रनाभ मथुरा के राजा बने, उस समय पूरा ब्रज्रमण्डल उजाड़ पड़ा था। उन्होंने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से संपूर्ण ब्रजमंडल की पुनः स्थापना की थी। वज्रनाभ के नाम से ही मथुरा क्षेत्र को ब्रजमंडल कहा जाता है। इस वज्र ने ही मथुरा में सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर भव्य मंदिर बनवाया था।
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